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नरकविभक्ति: पंचम अध्ययन -- प्रथम उद्दे शक
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भी अधिक प्रमाणयुक्त (लोहियपूयपुण्णा) रक्त और पीव से भरी हुई, (समुस्सिता ) ऊँची (कुंभी जइ ते सुता) ऐसी कुंभी नामक नरकभूमि कदाचित् तुमने सुनी होगी । भावार्थ
खून और मवाद को पकाने वाली ताजी सुलगाई हुई आग के प्रखर तेज से युक्त तथा पुरुष के प्रमाण से भी अधिक प्रमाणवाली, रक्त और पीव से भरी हुई कुम्भी नामक नरकभूमि का नाम कदाचित् तुमने सुना होगा ।
व्याख्या
रक्त और मवाद से पूर्ण कुंभी कैसी और कितनी बड़ी ? फिर सुधर्मास्वामी जम्बूस्वामी से भगवद्वचन कहते हैं - "नरक में कुम्भी नामक एक नरकभूमि है, जिसका स्वभाव रक्त और मवाद को पकाना है । वह ताजी प्रदीप्त अग्नि के ताप से युक्त है । वह कुम्भी बहुत बड़ी है और पुरुष के प्रमाण से भी अधिक प्रमाण वाली है, तथा वह ऊँट के आकार की बहुत ऊँची है । वह रक्त और मवाद से भरी रहती है । वह कुम्भी चारों ओर आग से जलती रहती है । देखने में भी वह अत्यन्त घृणास्पद एवं बीभत्स है । कुम्भी का वर्णन शास्त्रकार ने क्यों किया ? इसका समाधान अगली गाथा में देखिए ।
मूल पाठ
पक्खि तासु पयंति बाले, अट्टस्सरे ते कलुणं रसंते । तन्हाइया ते तउतंबतत्तं पज्जिज्जमाणाऽट्टतरं रसंति ॥ २५ ॥ संस्कृत छाया
प्रक्षिप्य तासु प्रपचन्ति बालान् आर्त्तस्वरान् तान् करुणं रसतः । तृष्णार्दितास्ते ताम्रतप्तं पाय्यमाना आर्त्तस्वरं रसन्ति
।।२५।।
अन्वयार्थ
( तासु ) रक्त और मवाद से भरी हुई उन कुम्भियों में (बाले) अज्ञानी तथा ( अट्टस्सरे) आर्तनाद करते हुए एवं ( कलुणं रसंते ) करुणस्वर से विलाप करते हुए नारकी जीवों को ( पविखप्प ) डालकर ( पययंति) पकाते हैं । ( तण्हाइया ) प्यास से व्याकुल (ते) वे नारकी जीव (तउतंबतत्त) नरकपालों के द्वारा तपा हुआ सीसा और ताँबा (पज्जिज्ज माणा ) पिलाये जाने पर ( अट्टतरं रसंति) आर्त्तस्वर से रुदन करते हैं ।
भावार्थ
आर्तनादपूर्वक करुण क्रन्दन करते हुए अज्ञानी नारकी जीवों को परमाधार्मिक असुर रक्त और मवाद से भरी हुई कुम्भी में डालकर पकाते | जब वे प्यास से व्याकुल होते हैं तो नरकपाल उन बेचारों को गर्म सीसा
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