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नरकविभक्ति : पंचम अध्ययन-प्रथम उद्देशक
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मूल पाठ छिदंति बालस्स खुरेण नक्कं, उठेवि छिदंति दुवेवि कण्णे । जिब्भं विणिक्कस्स विहत्थिमित्तं,तिक्खाहिं सूलाहिऽभितावयंति ॥२२॥
संस्कृत छाया छिन्दन्ति बालस्य क्षुरेण नासिकामोष्ठावपि छिन्दन्ति द्वावपि कौँ । जिह्वा विनिष्कास्य वितस्तिमात्रां तीक्ष्णाभिः शूलाभिरभितापयन्ति ।।२२।।
अन्वयार्थ (बालस्स) अविवेकी नारकी जीव की नाक को, नरकपाल (खुरेण) उस्तरे से (छिवंति) काट देते हैं, साथ ही (उठेवि) उनके दोनों ओठ भी और (दुवेवि कण्णे) दोनों कान भी (छिवंति) काट डालते हैं। तथा (जिन्भं विहत्थिमित्त विणिक्कस्स) बित्ताभर जीभ बाहर खींचकर (तिक्खाहिं सूलाहि) उसमें तीखे शूल चुभोकर (अभितावयंति) सन्ताप देते हैं।
भावार्थ
नरकपाल नारकी जीवों की नासिका, दोनों ओठ और दोनों कान तेज धार वाले उस्तरे से काट लेते हैं तथा उनकी जीभ को एक वित्ता (वितस्ति) भर बाहर खींच उसमें तीखे शूल भोंक देते हैं। इस प्रकार वे अत्यन्त पीड़ा देते हैं।
व्याख्या
परमाधामिकों द्वारा अंगों का छेदन और उत्पीड़न इस गाथा में नरकपालों द्वारा नारकी जीवों के विविध अंगों के छेदन, वेधन और उत्पीड़न की क्रूरता का वर्णन है। पूर्वगाथाओं में उक्त कथनानुसार वे परमाधार्मिक असुर नारकी जीवों को उनके पापों की याद दिला-दिलाकर सदैव नाना वेदनाओं से युक्त नारकों की नासिका, दोनों ओठ और दोनों कान काट लेते हैं। तथा मद्य, मांस और रस के लम्पट और मिथ्या भाषण करने वाले जीवों की जिह्वा एक वित्ता बाहर खींचकर उसमें तीखे शूल भोंक कर पीड़ा देते हैं। नारकों को अपने पापकर्मों की कितनी भारी सजा मिलती है ?
मूल पाठ ते तिप्पमाणा तलसंपडव, राइंदियं तत्थ थणंति बाला। गलंति ते सोणिअपूयमंसंपज्जोइया खारपइद्धियंगा ॥२३॥
संस्कृत छाया ते तिप्यमानास्तालसंपुटा इव रात्रिंदिवं तत्र स्तनन्ति बालाः। गलन्ति ते शोणितपूयमांसं प्रद्योतिताः क्षारप्रदिग्धांगाः ॥२३॥
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