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नरकविभक्ति : पंचम अध्ययन-प्रथय उद्देशक
५६३ कुल्हाड़ी लिये हुए (ते नारया) वे नरकपाल (हत्थेहि, पाएहि य बंधिऊणं) उनके हाथों और पैरों को बाँधकर (फलगं व तच्छंति) लकड़ी के तख्ते की तरह छीलते हैं ।
भावार्थ संतक्षण,नामक एक नरक है, वह प्राणियों को महान् ताप देने वाला है। उस नरक में घोर निर्दयी परमाधार्मिक हाथों में कुल्हाड़े लिए रहते हैं। वे नारकी जीवों के हाथ-पैर बाँधकर काष्टफलक के समान कुठार से काँटतेछीलते हैं।
व्याख्या
संतक्षण नरक में कुल्हाड़ा लिए हुए परमाधार्मिक इस गाथा में संतक्षण नामक नरक का परिचय दिया गया है कि वहाँ क्र रकर्मकर्ता निर्दयी नरकपाल हाथ में कुल्हाड़ा लिये रहते हैं, और ज्योंही नारकी जीव सामने दिखाई देता है, त्योंही उस पर टूट पड़ते हैं और उसके हाथ-पैर बाँधकर लकड़ी के छीलने की तरह कुल्हाड़े से उन्हें काट देते हैं।
मूल पाठ रुहिरे पुणो वच्चसमुस्सिअंगे भिन्नुत्तमंगे वरिवत्तयंता । पयंति णं णेरइए फुरते, सजीवमच्छे व अयोकवल्ले ॥१५॥
संस्कृत छाया रुधिरे पुनः वर्चः समुच्छ्तिांगान् भिन्नोत्तमांगान् परिवर्तयन्तः । पचन्ति नैरयिकान् स्फुरतः सजीवमत्स्यानिवायसकवल्याम् ॥१५॥
अन्वयार्थ (पुणो) फिर (रुहिरे वच्चसमुस्सिअंगे) जिनका रक्त से लिप्त शरीर-अंग मल के द्वारा फल गया है, (भिन्न मंगे) जिनका सिर चूर-चूर कर दिया गया है, (फुरते) और जो पीड़ा के मारे छटपटा रहे हैं, (रइए) ऐसे नारकी जीवों को (वरिवत्तयंता) परमाधार्मिक असुर ऊपर-नीचे, उलट-पलट करते हुए (सजीवमच्छेव) जीवित मछली की तरह (अयोकवल्ले) लोहे की कड़ाही में (पयंति) पकाते हैं।
भावार्थ जिन नारकी जीवों का सिर नरकपालों द्वारा पहले चूर-चूर कर दिया गया है, तथा जिनके अंग मल के द्वारा सूज गए हैं, नरकपाल उन नारकी जीवों का रक्त निकाल कर उसे पहले गर्म लोहे की कड़ाही में डालते हैं, फिर उसमें जीती हुई मछली की तरह छटपटाते हुए नारकी जीवों को डालकर रक्त में पकाते हैं।
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