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सूत्रकृतांग सूत्र
आसंदियं च नवसुत्त', पाउल्लाइं संकमठाए । अदु पुत्तदोहलठाए आणप्पा हवंति दासा व ॥१५॥
संस्कृत छाया अथानिकामलंकारं, खुखुणकं मे प्रयच्छ लोध्र च लोध्रकुसुमं च, वेणपलाशिकां च गुलिकां च ।।७।। कुष्टं तगरं चागुरु संपिष्ट सम मुशीरेण तैलं मुखाभ्यंगाय वेणुफलानि सन्निधानाय
॥८॥ नन्दीचूर्णं प्राहर छत्रोपानहौ च जानीहि शस्त्रञ्च सूपच्छेदाय आनीलञ्च वस्त्रं रञ्जय ॥६॥ सुफणि च शाकपाकाय आमलकान्युदकाहरणञ्च तिलककरण्यञ्नशलाकां, ग्रीष्मे मे विधुनकमपि जानीहि ॥१०॥ संडासिक (संदशक) च फणिहं च, सोहलिपाशकञ्चानय । आदर्शकं च प्रयच्छ दन्तप्रक्षालनकं प्रवेशय
॥११॥ पूगीफलं ताम्बूलकं सूचीसूत्रकं च जानीहि कोशञ्च मोचमेहाय शूपौ खलञ्च क्षारगालनकम् ॥१२।। चन्दालकञ्च करकं व!गृहञ्च आयुष्मन् खन शरपातञ्च जाताय, गोरथकं च श्रामणये घटिकां च सडिडिमकं च, चेलगोलकं च कुमारक्रीडाय ।। वर्षञ्च समभ्यापन्नमावसथञ्च जानीहि भक्तञ्च ॥१४।। आसन्दिकां च नवसूत्रां पादुकाः संक्रमणार्थाय अय पुत्रदोहदार्थाय, आज्ञप्ता भवन्ति दासा इव ॥१५॥
अन्वयार्थ (अदु अंजणि अलंकारं कुक्कययं मे पयच्छाहि) हे साधो ! मेरे लिए अंजन का पात्र (सुरमादानी), आभूषण, घंघरूदार वीणा लाकर दो, (लोद्धच लोद्धकुसुमं च) लोध्र का फल और फूल लाओ, तथा (वेणुपलासियं च गुलियं च) बाँस से बना हुआ वाद्य बंशी या बांसुरी लाकर दो, एवं पौष्टिक औषध की गोली भी लाकर दो ॥७॥
(कुटुं तगरं च अगरु) कुष्ट, तगर और अगरु (उसीरेण समं संपिट्ठ) खसखस के साथ पीसे हुए मुझे लाकर दो। तथा (मुहभिलिजाए तेल्लं) मुख पर लगाने के लिए तेल एवं (सन्निधानाए वेणुफलाई) वस्त्र आदि रखने के लिए बांस की बनी हुई एक सन्दूक लाओ ॥८॥
फिर वह कहती है-प्रियतम ! (नंदीचूण्णगाई) मुझे ओठ रंगने के लिए चूर्ण (पाहराहि) लाकर दो। (छत्तापानहं च जाणाहि) यह भी समझ लो कि छाता
।।१३।।
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