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स्त्रीपरिज्ञा : चतुर्थ अध्ययन-द्वितीय उद्देशक
५५७ और जूता भी लाना है। (सूवच्छेज्जाए सत्थं च) और सागभाजी काटने के लिए एक शस्त्र छुरी या चाकू लाओ। (वत्थं च आणीलं रयावेहि) तथा नीले रंग से मेरा कपड़ा रंगवा दो ॥६॥
(सागपाकाए सुणि) प्रियवर ! सागभाजी आदि पकाने के लिए तपेली या बटलोई लाओ, (आमलगाइं दगाहरणं च) आँवले ला दो, साथ ही पानी रखने का पात्र (घड़ा आदि) लाकर दो। (तिलगकरणिमंज नसलागं) तिलक लगाने और अंजन लगाने की सलाई भी लेते आना। तथा (घिसं मे विहूणयं जाणीहि) ग्रीष्मकाल में हवा करने के लिए एक पंखा भी ला दो ॥१०॥
(संडासगं च) नाक के बालों को उखाड़ने के लिए चींपिया लाओ। (फणिहं च) और केशों को संवारने के लिए कंघी भी लाओ। (सीहलिपासगं च आणाहि) तथा चोटी बाँधने के लिए ऊन की बनी हुई जाली (सीहलिपाशक) लाकर दो। (आदंसगं च पयच्छाहि) एक दर्पण (चेहरा देखने का शीशा) भी ला दो। (दंतपक्खालणे पवेसाहि) दाँत साफ करने के लिए दंतमंजन या दतौन भी लाकर दो ॥११॥
(पूयफलं) सुपारी, (तंबोलयं) पान, (सूईसुत्तगं च जाणीहि) और सूई-धागा लाकर दो। (कोसं च मोयमेहाए) तथा पेशाब करने के लिए एक बड़ा प्याला (भाजन , (सुप्पुखलगं च खारगालणं च) और सूप (छाजला) तथा ऊखली एवं खार गालने के लिए बर्तन लाकर शीघ्र दो ॥१२॥
(आउसो, हे आयुष्मन ! (चंदालगं) देवपूजन करने के लिए ताँबे का बर्तन, (करगं च) और जलपात्र (करवा) अथवा मधु रखने का पात्र लाओ । (वच्चघरं च खणाहि) और एक शौचालय (पाखाना; भी मेरे लिए खुदवा दो। (जायाए सरपाययं च) और अपने पुत्र के खेलने के लिए एक धनुष भी ला दो। (सामणेराए गोरहगं च) तथा अपने श्रमणपुत्र (श्रामणेर) के लिए एक तीन वर्ष का बैल ला दो ॥१३॥
(घडियं च सडिडिमयं) मिट्टी की बनी गुड़िया और झुनझुना बाजा, (चेलगोलकं च कुमारभूयाए) अपने कुमार (पुत्र) के खेलने के लिए कपड़े की बनी हुई गेंद ले आओ। (वासं च समभियावण्णं) और देखो, वर्षाऋतु निकट आ गयी है । (आवसहं भत्त च जाण) इसलिए वर्षा से बचने के लिए मकान (आवास) और अन्न का प्रबन्ध करो ॥१४॥
(नवसुत्तं च आसंदियं) नये सूत से बनी हुई एक मंचिया या कुर्सी लाओ। (संकमाए पाउल्लाई) और चलने-फिरने के लिए एक जोड़ी खड़ाऊँ भी लाओ। (अदु पुत्तदोहलहाए) और देखिए, मेरे पुत्रदोहद के लिए अमुक वस्तु लाओ।
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