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सूत्रकृतांग सूत्र
जानकर (तो पादुद्धठ्ठ) अपना पैर उठाकर (मुद्धि पहणंति) उसके मिर पर प्रहार करती हैं।
भावार्थ इसके पश्चात् उस साधु को चारित्र से छिन्न-भिन्न नष्ट-भ्रष्ट, स्त्रियों में आसक्त, कामभोगों (विषयों) में अतिप्रवृत्त -- दत्तचित्त एवं अपने वशवर्ती (गुलाम) जानकर वे स्त्रियाँ उस साधु के सिर पर अपना पैर उठा: कर लात मारती हैं।
व्याख्या भोगों में मूच्छित स्त्रीआसक्त साधु की विडम्बना
इस गाथा में शास्त्रकार उन साधुवेषी लोगों की विडम्बना का सम्भावनात्मक वर्णन करते हैं- 'अह तं तु भेदमावन्नं ""मुद्धि पहणंति ।' यहाँ उक्त साधु के चार विशेषण दिये हैं- चारित्र से नष्ट-भ्रष्ट, महिलाओं में अत्यासक्त, कामभोगों में अतिप्रवृत्त एवं स्त्रीवशवर्ती । यह एक मनोविज्ञानसम्मत तथ्य है कि जब स्त्रियाँ उक्त साधु को उसके रंग-ढंग, चाल-ढाल, वृत्ति-प्रवृत्ति एवं मनोभावों पर से जान लेती हैं कि यह अब हमारे वश में हो गया है, हम इसे जैसे कहेंगी, वैसे यह स्वीकार कर लेगा; जो कुछ कहा जायेगा, उसे उसी तरह मान लेगा। तब कभी तो वे अपने किये हुए कार्य के प्रति खूब आभार प्रकट करती हैं -- "तुम तो आजकल बड़े नटखट हो गये हो, हम तुमसे बोलेंगी नहीं। हम तुम्हारे पास नहीं आएँगी, क्योंकि तुम्हारा सिर मुंडा हुआ होने से तुम बड़े भद्दे मालम होते हो, तुम्हारा शरीर पसीने से तरबतर रहता है, मैलाकुचैला है, इस कारण तुम्हारे मुह, काँख, छाती और बस्तिस्थान आदि बदबू से भरे हैं। हमने तो यह न देखकर तुम्हारे प्रेम में पागल होकर अपने कुल, शील, धर्म और लज्जा की मर्यादा आदि छोड़कर तुम्हें अपना शरीर समर्पित कर दिया, परन्तु तुम इतने निष्ठुर हो कि हमारे लिए कुछ भी नहीं करते, हमारा कहना भी नहीं मानते।" इस प्रकार जब वे महिलाएँ रूठने का-सा स्वाँग करके नाराजी दिखाती है, तो स्त्रियों का गुलाम वह साधु उन रुष्ट स्त्रियों को मनाने, प्रसन्न करने लिए उनके चरणों में गिरता है. मधुर-मधुर वचनों से उनकी प्रशंसा करता है । कहा भी है
व्याभिन्नकेसरबृहच्छिरसश्च सिंहा, नागाश्च दानमदराजि कृशः कपोलैः । मेधाविनश्च पुरुषाः समरे च शूराः,
स्त्रीसन्निधौ परमकापुरुषा भवन्ति ॥ अर्थात्-सिर पर घने बालों वाले केसरी सिंह, मदजल के झरने से दुर्बल कपोल वाले हाथी, तथा बुद्धिशाली और युद्ध में शूरवीर पुरुष भी स्त्री के सामने अत्यन्त कायर और दीन बन जाते हैं।
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