________________
सूत्रकृतांग सूत्र
तथा स्त्रीसम्बन्धी दोषों के वर्जित करने से भगवान् महावीर स्वामी ने विजय प्राप्त करने योग्य कर्मों पर अथवा संसार के पराभव पर विजय प्राप्त होना बताया है, वैसे ही सभी साधकों को प्रयत्न करना चाहिए। सातवें अध्ययन में बताया गया है। कि शीलवजित गृहस्थ और कुशील अन्यतीर्थी अथवा पार्श्वस्थ आदि को छोड़ने वाले परित्यक्त - नि:शील - कुशील अर्थात् सुशील यानी शास्त्रानुसार संयम-पालक संविग्न साधक की जो सेवा करता है, वह साधक शीलवान् होता है । आठवें अध्ययन में कहा गया है कि बालवीर्य और पण्डितवीर्य, इन दोनों वीर्यों को जानकर पण्डितवीर्य में प्रयत्न करना चाहिए । नवें अध्ययन में धर्म का यथावस्थित स्वरूप कहा है । दशम अध्ययन में समाधि का वर्णन है। एकादश अध्ययन में सम्यग्दर्शन- ज्ञान चारित्ररूप मोक्षमार्ग का वर्णन है । द्वादश अध्ययन में क्रियावाद, अक्रियावाद, अज्ञानवाद, और विनयवाद इन चार मतों के मानने वाले ३६३ प्रकार के पाषण्डी, अपने-अपने मतों को सिद्ध करते हुए उपस्थित होते हैं । उन पाषण्डियों के द्वारा अपने पक्ष के समर्थन के लिए दिये गये साधनों में दोष बताकर उनका निराकरण किया गया है । तेरहवें अध्ययन में कपिल, कणाद, अक्षपाद, बुद्ध और जेमिनि आदि सब मतवादियों को कुमार्ग का प्रवर्तक सिद्ध किया गया है । ग्रन्थ नामक चौदहवें अध्ययन में शिष्य सम्बन्धी गुणों और दोषों को बताकर कहा गया है कि साधक को शिष्य सम्बन्धी गुणों से सम्पन्न होकर सदा गुरुकुल में निवास करना चाहिए | आदानीय नामक पन्द्रहवें अध्ययन में जो शब्द अथवा अर्थ ग्रहण किये जाते हैं, उन्हें 'आदानीय' कहकर वे आदानीय पद अथवा अर्थ पूर्व- वर्णित पदों और अर्थों के साथ प्रायः मिलाये गये है | मोक्षमार्ग साधक सम्यक् चारित्र का भी इसमें वर्णन है । गाथा नामक सोलहवें अध्ययन में पाठ बहुत कम हैं। उसमें विशेषतः १५ अध्ययनों में जो अर्थ ( बातें) कहा गया है, उसी का संक्षेप में वर्णन है ।
१२
इस प्रकार गाथाषोडशक नामक सोलह अध्ययनों में वर्णित विषयों ( अर्थाधिकारों) का संक्षेप में कथन किया गया ।
सूत्रकृतांगसूत्र के दोनों श्रुतस्कन्धों में कुल तेईस (१६+७ = २३) अध्ययन हैं । समवायांगसूत्र में सूत्रकृतांगसूत्र के २३ अध्ययनों का नाम इस प्रकार है
—
तेवीसं सूयगडज्झयणा पण्णत्ता, तं जहा -- समए वेयालिए उवसग्ग परिणा थोपरिणा नरयविभत्ती महावीरथुई कुसीलपरिभासए वीरिए धम्मे समाहिमगे समोसरणे आहतहिए गंथे जमईए गाथा पुंडरीए किरियाठाणा, आहारपरिणा अपच्चक्खाणकिरिया अणगारसुयं अद्दइज्जं नालंदइज्जं ।
सूत्रकृतांगसूत्र के २३ अध्ययन कहे है, वे इस प्रकार हैं-समय, वैतालीय, उपसर्गपरिज्ञा, स्त्रीपरिज्ञा, नरकविभक्ति, महावीरस्तुति, कुशीलपरिभाषक, वीर्य,
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org