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सूत्रकृतांग सूत्र
आमंत्रित करती हैं, प्रार्थना करती हैं । अतः विवेकी सानु स्त्री सम्बन्धी इन शब्दों-बातों को नाना प्रकार के पाशबन्धन समझे ।
व्याख्या
स्त्रियों के मधुर शब्दों को मोहबन्धन माने इस गाथा में स्त्रीजन्य उपसर्ग का दूसरे पहलू से चित्रण किया गया है । स्त्रियाँ किसी पुरुष को अपने वाग्जाल में कैसे फँसा लेती हैं ? इसे शास्त्रकार बहुत ही नपे-तुले शब्दों में कहते हैं - 'आमंतिय विवरुवाणि ।'
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आशय यह है कि कामिनियाँ स्वभाव से अकार्य करने को सहसा उद्यत रहती हैं । वे पहले साधु को इशारा करती हैं या वचन देती हैं कि "मैं अमुक समय आपके पास आऊँगी । आप भी वहाँ तैयार रहना ।" इस प्रकार का आमंत्रण देकर, फिर इधर-उधर के अनेक विश्वसनीय वचनों से वे साधु को विश्वास दिलाती हैं, ताकि वह संकोच छोड़ दे । वे साधु का भय मिटाने के लिए झूठ-मूठ कहती हैं"मैं अपने पति से पूछकर आपके पास आयी हूँ । अपने पति को भोजन कराकर, उनके पैर धोकर एवं उन्हें सुलाकर यहाँ आयी हूँ । आप मेरे पर विश्वास कीजिए और मेरे पति की शंका छोड़कर निर्भय एवं निश्चिन्त होकर मेरे साथ समागम कीजिए । निःसंकोच होकर यह कार्य कीजिए । मेरा यह शरीर, हृदय, ये आभूषण, यह धन वगैरह सब आपका है । इस शरीर को आप चाहें जिस कार्य में लगाएँ, आनन्द लूटें । मेरा शरीर आदि सब आपके चरणों में समर्पित है । मैं तो आपके चरणों की दासी हूँ, मुझे अंकशायिनी बनाइए ।" यां विविध वाग्जाल बिछाकर स्त्रियाँ साधु को विश्वस्त करके अपने साथ सम्भोग के लिए प्रार्थना करती हैं । नाना प्रकार के प्रलोभन के सब्जबाग दिखाती हैं । परन्तु परमार्थ को जानने वाला साधु स्त्री सम्बन्धी इन नाना शब्दादि विषयों को पाशस्वरूप समझे, क्योंकि निश्चय ही ये स्त्री सम्बन्धी शब्दादि विषय दुर्गतिगमन के कारण हैं, मोक्षमार्ग में अर्गला हैं । इनका परिणाम अत्यन्त बुरा है, यह जानकर प्रत्याख्यानपरिज्ञा से इन्हें त्याग दे ।
मूल पाठ
मणबंध
गेहि, कलुणविणीयमुवगसित्ताणं ।
अदु मंजुलाई भाति, आणवयंति भिन्नकहाहि ॥७॥
संस्कृत छाया मनोबन्धनैरनेकैः करुणविनीतमुपश्लिष्य
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अथ मंजुलानि भाषन्ते, आज्ञापयन्ति भिन्नकथाभिः ||७||
अन्वयार्थ
(गेहि मणबंधणे हि ) अनेक प्रकार के चित्ताकर्षक मनोहारी उपायों के द्वारा
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