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स्त्रीपरिज्ञा : चतुर्थ अध्ययन -- प्रथम उद्देशक
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तम्हा ण उवसंभो गंतव्वो णिच्चमेव इत्थीसु पढमुद्दे से भणिया जे दोसा ते गणतेणं सुसमत्थाऽवसमत्था की रंती अप्पसत्तिया पुरिसा दीसंती सूरवादी णारीवसगा ण ते सूरा धम्मं जो दढा मई सो सूरो सत्तिओ य वीरो य । ण हु धम्मणिरुस्सा हो पुरिमो सूरो सुबलिओऽवि ॥ ६२॥ एते चैव य दोसा पुरिससमाएवि इत्थीयाणंपि तम्हा उ अप्पमाओ विरागमग्गमि तासि तु प्रथम उद्दे शक में स्त्रीजन्य - उपसर्ग के सिलसिले में यह बताया गया है कि स्त्रियों के साथ संसर्ग रखने, उनके साथ चारित्रनाशक बातें करने से, स्त्रियों के कामोत्तेजक अंगोपांगों को विकारभाव से देखने आदि से अल्पपराक्रमी साधक का शील ( चारित्र) भंग हो जाता है । कभी वाचिक रूप से तो कभी मानसिक रूप से और प्रसंगवश कायिक रूप से भी वह शीलभ्रष्ट हो जाता है । संयमपालन में शिथिल होकर दीक्षा तक को छोड़ बैठता है ।
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द्वितीय उद्दे शक में यह बताया है कि शीलभ्रष्ट साधु को इसी जन्म में स्वपक्ष और परपक्ष की ओर से कैसे-कैसे तिरस्कार आदि दुःखों के प्रसंग आते हैं ? शीलभंग से हुए अशुभकर्मबन्ध के कारण अगले जन्मों में उसे दीर्घकाल तक संसारपरिभ्रमण करना पड़ता है। स्त्रियां बड़े-बड़े बुद्धिमानों, शूरवीरों और तपस्वियों को कैसे शीलभ्रष्ट करके अपने वश में कर लेती हैं ? इसके सम्बन्ध में अत्यन्त बुद्धिमान अभयकुमार का, प्रचण्ड शूरवीर चन्द्रप्रद्योत का, महान् तपस्वी कूलबाल का दृष्टान्त देकर समझाया है कि ये तीनों कृत्रिमभाव वाली तथा कपट की खान कामिनियों के द्वारा कैसे वश में किये जा चुके हैं। कई तो स्त्रियों के द्वारा कपट से राज्यभ्रष्ट, शीलभ्रष्ट एवं तपोभ्रष्ट किये गये हैं । कई शीलभ्रष्ट किये जाकर इसी जन्म में तिरस्कृत, अपमानित एवं पददलित हुए हैं ।
इसलिए स्त्रियों को सुगतिमार्ग की अर्गला - विघ्नकारिणी, कपट से भरी हुई, पुरुष को ठगने में अतिनिपुण जानकर विवेकी साधक को उनका कदापि विश्वास नहीं करना चाहिए । निष्कर्ष यह है कि प्रथम उद्दे शक में जो स्त्रियों के दूषण बताये हैं तथा उसी सन्दर्भ में द्वितीय उद्दे शक में जो दोष शीलभ्रष्टता के कारण उत्पन्न होते हैं, उन्हें बताकर विचारशील साधक को मार्गदर्शन दिया है कि स्त्रियों को पटराशि की मूर्ति समझकर स्वपर - हितैषी साधक को सहसा उनके विश्वास में नहीं बह जाना चाहिए।
शत्रुसैन्य को जीतने आदि में अत्यन्त समर्थ पुरुषों को भी स्त्रियों ने पलभर में अपने नेत्रों के कटाक्ष से ही वशीभूत करके डरपोक और असमर्थ बना दिया है ।
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