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________________ चतुर्थ अध्ययन : स्त्रीपरिज्ञा तृतीय अध्ययन की व्याख्या की जा चुकी है, अब चतुर्थ अध्ययन प्रारम्भ हो रहा है। तीसरे अध्ययन के साथ इस अध्ययन का सम्बन्ध यह है कि पूर्व अध्ययन में अनुकल-प्रतिकल उपसर्गों का वर्णन किया गया है, उसमें यह बताया गया था कि अनुकूल उपसर्ग प्रायः दुःसह होते हैं और उन उपसर्गों में भी स्त्रीकृत उपसर्ग अत्यन्त दुस्तर होता है। अतः चतुर्थ अध्ययन में स्त्रीकृत उपसर्गों पर विजय प्राप्त करने के लिए उपदेश दिया गया है। इसी सन्दर्भ में इस अध्ययन--स्त्रीपरिज्ञा के उपत्रम आदि चार अनुयोग द्वार होते हैं । उपक्रम में अर्थाधिकार यहाँ दो प्रकार का होना सम्भव है---अध्ययनार्थाधिकार और उद्देशार्थाधिकार । चतुर्थ अध्ययन का संक्षिप्त परिचय ___अध्ययन-अर्थाधिकार तो यहाँ स्पष्ट है । इस स्त्रीपरिज्ञा अध्ययन में बताया गया है कि साधुओं पर किस-किस प्रकार से स्त्रीजन्य-उपसर्ग आता है ? साधु जब किसी स्त्री के अधीन (गुलाम) हो जाता है, तब स्त्री उस साधु के सिर पर पादप्रहार करती, रूठ जाती है, कभी उसे अपने पैरों को रचाने, कमर दबवाने, अन्नवस्त्र लाने, तिलक और अंजन लाने तथा पंखा झलने का आदेश देती है। कभी बच्चे के खेलने के लिए खिलौने लाने तथा उसे गोद में लेकर खिलाने का आदेश देती हैं। कभी कपड़े धुलवाती है, कभी पानी भरवाती है, इत्यादि विविध पहलुओं से स्त्रीजन्य उपसर्गों का वर्णन किया गया है। अध्ययन-अर्थाधिकार के सम्बन्ध में नियुक्तिकार ने प्रथम अध्ययन की प्रस्तावना में 'थोदोसविवज्जणा चेव' इस गाथा के द्वारा पहले ही बता दिया है। उद्देशार्थाधिकार इस प्रकार है-इस अध्ययन में दो उद्देशक हैं। इनके अर्थाधिकार के सम्बन्ध में नियुक्ति गाथाएँ इस प्रकार हैं पढमे संथव-संलवमाइहि खलणा उ होति सीलस्स। बितिए इहेव खलियस्स अवत्थाकम्मबंधो य ॥५८॥ सूरा मो मन्नंता कइतवियाहिं उवहिप्पाहाणाहिं ।। गहिया हु अभय-पज्जोय-कूलवालादिणो बहवे ॥५६।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003599
Book TitleAgam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorHemchandraji Maharaj, Amarmuni, Nemichandramuni
PublisherAtmagyan Pith
Publication Year1979
Total Pages1042
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sutrakritang
File Size17 MB
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