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उपसर्गपरिज्ञा : तृतीय अध्ययन-चतुर्थ उद्देशक
५०१ अपनी बुद्धि से या दूसरे से सुनकर मोक्ष प्रदान करने में अनुकल इस श्रुतचारित्रधर्म को सुन-समझकर सम्यग्दृष्टि, शान्त या मुक्ततुल्य साधक मोक्षप्राप्तिपर्यन्त संयम का आचरण भलीभाँति करे।
'इति' शब्द समाप्ति अर्थ में है । 'ब्रवीमि' का अर्थ भी पूर्ववत् है ।
इस प्रकार तृतीय अध्ययन का चतुर्थ उद्देशक अमरसुखबोधिनी व्याख्यासहित सम्पूर्ण हुआ।
॥ सूत्रकृतांगसूत्र का तृतीय अध्ययन समाप्त ॥
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