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सूत्रकृतांग सूत्र
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( आउंमि जोव्वणे खोणे) आयु और युवावस्था के क्षीण होने पर (परितप्पंति ) पश्चात्ताप करते हैं ।
भावार्थ
असत्कर्म के करने से भविष्य में मिलने वाले दुःखों को न देखते हुए जो लोग केवल वर्तमान सुख की खोज में लगे रहते हैं, वे जवानी बीत जाने पर और आयुष्य क्षीण होने पर पश्चात्ताप करते हैं ।
व्याख्या
gora लोग पछताते हैं ? क्यों और कब ?
।
जो लोग पूर्वोक्त भ्रान्त मान्यता के शिकार होकर कामासक्त रहते हैं, हिंसा, झूठ, व्यभिचार, चोरी, परिग्रह आदि पापकर्मों में या अन्य प्रपंचों में रात-दिन लगे रहते हैं । वे उन दुष्कर्मों को करते समय भविष्य में उनके कारण नरकादि में मिलने वाली यातनाओं का कोई विचार नहीं करते, उनकी दृष्टि केवल वर्तमान सुख, ऐशआराम, विषयभोगों के मनमाने सेवन आदि पर ही टिकी रहती है । उन क्षणिक सुखोपभोगों के आवेश में वे अपने भविष्य का कोई विचार नहीं करते, न अपनी अनमोल जिन्दगी की कोई परवाह करते हैं । किन्तु जब यौवन ढल जाता है, बुढ़ापा आकर झाँकने लगता है, मृत्युदूत सिरहाने आकर खड़े हो जाते हैं, सारा शरीर जर्जर हो जाता है, शक्ति क्षीण हो जाती है, आँख, कान, जीभ, नाक आदि इन्द्रियाँ काम करने से जवाब दे देती हैं, कोई न कोई बीमारी आकर धर दबोचती है, तब उनको जिन्दगी का खयाल आता है और वे पछताते हैं--"हाय ! हमने अपनी अमूल्य जिदगी यों ही बेकार खो दी। कुछ भी धर्माचरण नहीं किया । संसार की मोहमाया में उलझे रहे । साधक का वेष पहनकर जनता को धोखा देते रहे, जनता में धर्मात्मा कहलाते रहे ।" वे इस प्रकार पश्चात्ताप करते हैं
हतं मुष्टिभिराकाशं, तुषाणां कण्डनं कृतम् । यन्मया प्राप्य मानुष्यं सदर्थे नादरः कृतः ॥
अर्थात् - मैंने मनुष्य जन्म पाकर अच्छी बातों को नहीं अपनाया, सदाचरण नहीं किया । यों मुट्ठियों से आकाश को पीटता रहा और चावलों का भुस्सा कूटता रहा
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विवावलेवन डिएहिं जाई कीरंति जोव्वणमएणं । वयपरिणामे सरियाई ताई हिअए खुडुक्कंति ॥
अर्थात् — वैभव के नशे में, यौवन के मद में, जो कार्य नहीं करने चाहिए, वे किये, किन्तु जब उम्र ढल जाती है और वे अकृत्य याद आते हैं, तब मनुष्य के हृदय में काँटे-से खटकने लगते हैं ।
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