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प्रथम श्रतस्कन्ध : उपोद्धात अस्मिन्निति सूत्रकृतम्' तथा 'स्वपरसमयार्थसूचनं सूचा, साऽस्मिन् कृतेति सूचाकृतम् ।' अर्थात्---जो तीर्थंकरों के द्वारा अर्थरूप में उत्पन्न होकर गणधरों के द्वारा (ग्रन्थ) सूत्ररूप में रचा गया है, उसे 'सूतकृत' कहते हैं। सूत्र का अनुसरण करते हुए जिसमें तत्त्वबोध (उपदेश) किया गया है, वह 'सूत्रकृत' कहलाता है । तथा अपने
और दूसरों के सिद्धान्तों को सूचित करना 'सूचा' कहलाता है, वह इस शास्त्र में किया गया है, इसलिये इसका नाम 'सूचाकृत' भी है।
___ यहाँ एक प्रश्न और समुद्भूत होता है कि 'सूत्रकृतांगसूत्र' की सूत्ररूप में रचना गणधर भगवान् ने की है, परन्तु उन्होंने संज्ञासूत्र, संग्रहसूत्र, वृत्तनिबद्धसूत्र और जातिनिबद्धसूत्र-इन चार प्रकार के सूत्रों में से सूत्रकृतांग की रचना किस सूत्र के रूप में की है ? वैसे सारे शास्त्र का दोहन करने से प्रतीत होता है कि यह मुख्यतया 'वृत्तनिबद्धसूत्र' है। गौणरूप से संज्ञासूत्र भी है, संग्रहसूत्र भी है और प्रथम श्रुतस्कंध के एक अध्ययन को छोड़कर शेष पद्य में है और दूसरा गद्य-पद्य दोनों में है। अनुष्टुप, वैतालिक और इन्द्रवज्रा छन्दों का प्रयोग किया गया है। इसलिये यह गद्य-पद्यात्मक होने से जाति निबद्धसूत्र भी है।
__सूत्र शब्द का 'निक्षेप' होने के बाद 'कृत' शब्द का निक्षेप इस प्रकार से समझना चाहिए। नाम, स्थापना और द्रव्य-कृत को छोड़कर हम सीधे 'भावकृत' पर विचार करते हैं। भावकृत या अर्हन्तदेव के भावों को सूत्ररूप में ग्रथित करने वाले गणधर हैं।
तात्पर्य यह है कि तीर्थंकर भगवान् महावीर द्वारा प्रकाशित ज्ञान को उनके परम मेधावी साक्षात् शिष्य गणधरों ने ग्रहण करके जो द्वादशांगीरूप में सूत्रबद्ध किया, वह अंगप्रविष्ट श्रुत होता है तथा कालदोष से बुद्धि बल और आयु की क्षीणता को देखकर सर्वसाधारण के हित के लिये उसी द्वादशांगी में से भिन्न-भिन्न विषयों पर गणधरों के पश्चाद्वर्ती शुद्धबुद्धि आचार्यों ने जो शास्त्र रचे, वे अंगबाह्य
१. जो सूत्र अपने किये गये संकेत (पारिभाषिक शब्द) के अनुसार रचा गया है,
उसे 'संज्ञासूत्र' कहते हैं। जैसे --'जे छेए' इत्यादि सूत्र 'संज्ञात्मक' हैं, इनमें 'सागारिक' और 'आमगंध' शब्द स्वशास्त्र-संकेतित हैं। जो सूत्र बहुत से अर्थों का संग्रह करता है, वह संग्रहसूत्र है। जैसे 'उत्पादव्ययध्रौव्ययुक्तं सत्' इस सूत्र में सत् कहने से सभी द्रव्यों (धर्म-अधर्म आदि) का संग्रह होता है। जो सूत्र अनेक प्रकार के छंदों में रचा गया है, उसे 'वृत्तनिबद्ध-सूत्र' कहते हैं । जैसे 'बुज्झिज्जत्ति तिउटिज्जा' वृत्तनिबद्धसूत्र है। जातिनिबद्ध सूत्र चार प्रकार का है - कथनीय (कथाएँ हों), गद्यसूत्र, पद्यसूत्र और गेयसूत्र ।
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