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सूत्रकृतांग सूत्र
वाले तथा ( उवहाणेण तज्जिया) तप से पीड़ित (मंदा) अदूरदर्शी अल्पसत्त्व साधक ( उज्जाणंसि जरग्गवा) ऊँचे चढ़ाई वाले मार्ग में बूढ़े बैल के समान ( तत्थ ) उस संयम में (विसीति) क्लेश पाते हैं ।
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भावार्थ
नीरस संयम का पालन करने में असमर्थ एवं तपस्या के नाम से काँपने वाले अदूरदर्शी अल्पसत्त्व अज्ञ साधक संयममार्ग में उसी तरह क्लेश पाते हैं, जिस तरह बूढ़े - जराजीर्ण बैल ऊँचे चढ़ाई वाले मार्ग में कष्ट पाते हैं ।
व्याख्या
उपसर्ग उपस्थित होने पर विवाद पाने वाले साधक
इस गाथा में संयममार्ग में क्लेश पाने के दो कारण प्रस्तुत किये गये हैं(१) पूर्वोक्त भोगप्रलोभनों के चक्कर में आने से जिन्हें संयम रूखा-सूखा, नीरस और भारभूत लगता है, ( २ ) जो १२ प्रकार की बाह्य आभ्यन्तर तपस्या से कतराता है, तपस्या का नाम सुनते ही पीड़ा पाता है। ऐसे मन्द पराक्रमी अज्ञ साधक संयम की उच्च साधना के मार्ग में किस प्रकार कष्ट पाते हैं ? यह बताने के लिए दृष्टान्त दिया है - जैसे जीर्णशीर्ण बूढ़ा हारा-थका बैल ऊपर चढ़ाई वाले मार्ग में कष्ट पाता
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है । ऊँची चढ़ाई वाले मार्ग में तो जवान बैल को भी कष्ट होता है, फिर वृद्ध बैल की तो बात ही क्या ? वैसे ही साधना की ऊँचाइयों पर चढ़ने में मन्दसत्त्व साधक पद-पद पर कष्ट पाता है । शास्त्रकार का आशय यह है कि जो साधक धीरता और संहनन (दृढ़ता ) से युक्त एवं विवेकी हैं, उनका ऐसे अनुकूल उपसर्गरूपी आवर्ती के बिना भी संयम से भ्रष्ट होना सम्भव है, तब फिर जो विवेकमूढ़ हैं, आवर्तों के द्वारा उपसर्ग के चक्कर में पड़े हैं, उनका तो कहना ही क्या ?
मूल पाठ
एवं निमंतणं ल, मुच्छिया गिद्धा इत्थी अज्झोववन्ना कामेह, चोइज्जंता गया गिहं ॥
।
संस्कृत छाया
एवं निमंत्रणं लब्ध्वा मूच्छिताः गृद्धाः स्त्रीषु । अध्युपपन्नाः कामेषु चोद्यमानाः गता गृहम् ||२२||
२२ ॥ |
॥त्ति बेमि ||
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अन्वयार्थ
( एवं ) पूर्वोक्त प्रकार से ( निमंतणं ) भोग भोगने के लिए निमंत्रण ( लद्ध ) पाकर (मुच्छ्यिा) कामभोगों में आसक्त ( इत्थी गिद्धा ) स्त्रियों में आसक्त मोहित,
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॥ इति ब्रवीमि ||
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