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________________ सूत्रकृतांग सूत्र भावार्थ साधु आगमों से, ग्रन्थों से तथा अन्य अनुभवों से समस्त पदार्थों को जान कर आश्रय-आधार सर्वज्ञोक्त संवर का ही ले। वह धर्म को अपना प्रयोजन समझे और बाह्य-आभ्यन्तर तप में ही अपनी समस्त शक्तियाँ लगाए तथा मन-वचन-काया की गुप्ति-रक्षा से युक्त होकर स्वपरकल्याण के विषय में अथवा आत्मपरायण होकर यत्न करे ; और परमायत -परमधाम-मोक्ष के लक्ष्य में स्थित रहे। व्याख्या साधु की मोक्षयात्रा के पाथेय इस गाथा में पुनरावृत्ति करके भी शास्त्रकार ने साधक की मोक्षयात्रा के कुछ पाथेयों का संक्षेप में दिग्दर्शन कराया है --- (१) जाने सब कुछ, किन्तु आधार सर्व शोक्त संवर का ले, (२) धर्म से ही अपना प्रयोजन रखे. (३) तपश्चर्या में ही अपनी शक्तियाँ लगाए, (४) तीन गुप्तियों से युक्त होकर रहे, (५) स्वपरकल्याण में अथवा आत्मपरक यत्न करे, (६) मोक्ष के लक्ष्य में डटा रहे । कितने सुन्दर और हितकर पाथेय बताए हैं मोक्षयात्री के लिए ! इन्हें पाथेय के रूप में लेकर साधु अपनी मोक्षयात्रा करे तो सचमुच एक दिन मोक्ष को प्राप्त कर सकता है। इन छहों पर कुछ विचार कर लें-साधक बहुत-से पदार्थों को जानता है, उनमें से कुछ हेय होते हैं, कुछ उपादेय और कुछ ज्ञय । इन सबका विश्लेषण करके छाँटने में छद्मस्थतावश कदाचित् साधु गड़बड़ा जाय, इसलिए शास्त्रकार कहते हैं----सर्वज्ञोक्त संवररूप अधिष्ठान-आधार से उनका मिलान करके चले। दूसरे नम्बर में वह धर्म को ही एक मात्र परम पदार्थ (मोक्ष प्राप्ति का उपादेय पदार्थ) समझे, शेष सबको अनर्थ समझे। तीसरे नम्बर में बाह्य-आभ्यन्तर द्वादश प्रकार के तप में ही अपनी शक्तियाँ लगाए, व्यर्थ के कार्यों में नहीं । चौथे नम्बर में त्रिगुप्तियों से युक्त रहे, ताकि आत्मा पापकर्मों से बच सके। पाँचवें नम्बर में स्वपर-कल्याण में या आत्मपरक होकर यत्न करे, अन्य अकल्याण या अहितकर प्रपंच में न लगे। तथा मोक्ष के सिवाय और कोई लक्ष्य न रखे। वही परम -- आयतन- श्रेष्ठधाम हैआत्मा का। । मूल पाठ वित्त पसवो य नाइओ, तं बाले सरणं ति मन्नइ । एते मम तेसु वी अहं नो ताणं सरणं न विज्जई ॥१६॥ संस्कृत छाया वित्तं पशवश्च ज्ञातयस्तद् बालः शरणमिति मन्यते । एते मम तेष्वप्यहं नो ताणं शरणं न विद्यते ॥१६॥ For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.003599
Book TitleAgam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorHemchandraji Maharaj, Amarmuni, Nemichandramuni
PublisherAtmagyan Pith
Publication Year1979
Total Pages1042
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sutrakritang
File Size17 MB
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