________________
३७८
मूल पाठ
वाहेण जहावविच्छए, अबले होइ गवं पचोइए
से अंतस अप्पथाम, नाइवहइ अबले विसीयति ॥५॥
सूत्रकृतांग सूत्र
संस्कृत छाया
वान यथावविक्षतोऽबलो भवति गौः प्रचोदितः । सोऽन्तशोऽल्पस्थामा नातिवहत्यबलो विषीदति ||५||
अन्वयार्थ
( जहा ) जैसे ( बाहेण ) गाड़ीवान के द्वारा ( वविच्छए) चाबुक मारकर ( पचोइए) प्रेरित किया हुआ ( गवं ) बैल ( अबले) दुर्बल ( होइ) हो जाता है, फिर वह चलता नहीं है । (से) वह (अध्वथामए) अल्प सामर्थ्य वाला ( अबले) दुर्बल बैल ( अंतसो ) अन्त में ( नाइवहइ ) भार वहन नहीं करता है, अपितु (विसीयति ) थक जाता है और कीचड़ आदि में फँसकर क्लेश पाता है ।
भावार्थ
जैसे गाड़ीवान के द्वारा चाबुक मार-मार कर चलाया (प्रेरित किया ) हुआ बैल दुर्बल हो जाता है, फिर वह कठिन मार्ग को पार नहीं कर सकता । अन्त में वह अल्पसामर्थ्यवाला दुर्बल बैल भार ढो नहीं सकता, अपितु विषममार्ग में कहीं कीचड़ आदि में फँसकर क्लेश पाता है ।
मूल पाठ एवं कामेसणं विऊ अज्जसुए पयहेज्ज संथवं 1
कामी कामे ण कामए लद्ध वावि अल कण्हुई ||६|| संस्कृत छाया
1
एवं कामेषणायां विद्वान् अद्यश्वः प्रजह्यात् संस्तवम् कामी कामान्न कामयेत् लब्धान् वाऽप्यलब्धान् कुतश्चित् ॥६॥
अन्वयार्थ
( एवं ) इसी प्रकार ( कामेसणं विऊ) काम के ( अज्जसु ए ) आज या कल में वह (संथवं ) काम - भोग की देगा, ऐसा सिर्फ विचार किया करता है, छोड़ नहीं सकता, अत: (कामी) कामी पुरुष (कामे) काम भोगों की ( ण कामए) कामना ही न करे और ( लद्ध वावि) प्राप्त हुए काम-भोगों को भी (अलद्ध कण्हुई ) अप्राप्त के समान जाने यही अभीष्ट है ।
Jain Education International
अन्वेषण में निपुण पुरुष
एषणा को ( पयहेज्ज ) छोड़
भावार्थ
इसी प्रकार काम-भोगों के अन्वेषण में निपुण पुरुष आज या कल में
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org