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वैतालीय : द्वितीय अध्ययन-द्वितीय उद्देशक संसारसागर को पार किया है, ऐसा सर्वज्ञतीर्थङ्कर ने कहा है, यह मैं तुमसे कहता हूँ।
व्याख्या
संसारसागर से कौन और कैसे पार हुए ? पूर्वगाथा में प्ररूपित आत्मकल्याण के लिए आचरण की अनिवार्यता के सन्दर्भ में इस गाथा में बताया गया है कि किस धर्म का कैसे-कैसे आचरण किया जाय, जिससे साधक संसारसागर को पार कर सके ? – 'एवं मत्ता आहियं ।'
आशय यह है कि पूर्वगाथाओं द्वारा आत्मकल्याण को सुदुर्लभ मानकर इस आर्हत्प्ररूपित सर्वश्रेष्ठ धर्म को स्वीकार करके ज्ञानादि से युक्त लघुकर्मी बहुत-से व्यक्ति आचार्य आदि द्वारा या तीर्थंकरों द्वारा उपदिष्ट मार्ग का अनुष्ठान करके पापकर्म से निवृत्त हो गये और उन्होंने अपार संसारसागर को पार कर लिया, यह मैंने तुम लोगों से कहा है। तीर्थंकरों ने दूसरों से कहा है।
'इति' शब्द समाप्ति अर्थ में है, 'ब्रवीमि' शब्द पूर्ववत् है ।
इस प्रकार सूत्रकृतांगसूत्र के द्वितीय अध्ययन का द्वितीय उद्देशक अमरसुखबोधिनी व्याख्या सहित पूर्ण हुआ।
॥ द्वितीय अध्ययन का द्वितीय उद्देशक समाप्त ॥
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