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हुआ गर्म सीसा और ताँबा, जैसा और जितना दुष्कर्म : वैसा और उतना ही दुख, अनार्य पुरुषों का इष्ट स्पर्शादि से रहित होकर
नरकनिवास । द्वितीय उद्देशक : नरकाधिकार
६०८-६३३ सतत दुख स्वभाव वाले अन्य नरक और पापी नारक, परमाधार्मिकों द्वारा नारकी जीवों को यातना, पापकर्मों की याद दिला कर रोषपूर्वक ताड़न, नरक की जलती भूमि पर चंक्रमण, नोकदार आरे से वेध, परमाधार्मिकों द्वारा बलात् चलने को बाध्य, चिरकाल तक संतापनी में संतप्त नारक, नारक गेंद के समान आकार की नरक-कुम्भी में, नारकी जीवों की वही हाय-हाय, नरक के लोहमुखी पक्षियों द्वारा घोर कष्ट, नरकपालों द्वारा नारकी जीवों पर बरसाया जाता कहर, सदा अग्निमय-प्राणिघातक स्थानों में दुखी नारकी जीव, प्रज्वलित चिता में झोंक देने पर भी पानी-पानी, एक तो सदा गर्म स्थान फिर डंडों से पिटाई, नारकों के समस्त अंग भंग और गर्म सीसा पीने को बाध्य, पूर्व पापों की याद दिलाकर भारवहन को बाध्य, यातना पर यातना, आकाशस्थ विशाल वैता. लिक पर्वत : नारकों के लिए महाकाल, अब इन आँसुओं का कोई मूल्य नहीं, नारकों की भयंकर दुर्दशा, नारकों को खा जाने वाले ये मुख्वार और भूखे गीदड़, सदाजला नदी : नारकों को कष्टदायिनी, अकेले ही दीर्घकाल तक दुखरूप फलभोग ! जैसे जिसके कर्म, वैसा ही फलभोग, 'नरक विभक्ति' से साधक शिक्षा या प्रेरणा ले, चातुर्गतिकरूप अनन्त संसार का स्वरूप समझो।
छठा अध्ययन : वीरस्तुति : ६३४-६७२ अध्ययन का संक्षिप्त परिचय, वीर और स्तुति शब्द के निक्षेपार्थ, विश्व हितकर अनुपम धर्म का प्ररूपक कौन ? भ० महावीर के ज्ञान, दर्शन, शील के सम्बन्ध में पुनः प्रश्न, ऐसे भगवान् की महत्ता को जानने हेतु उनके धर्म व धैर्य को देखो, जीव के नित्यानित्य स्वरूप और धर्म का कथन, निर्ग्रन्थ ज्ञातपुत्र की विशेषताएँ, भ. महावीर के विशिष्ट गुण, भ० महावीर धर्मनेता और सर्वश्रेष्ठ पुरुष थे, अक्षय, अपार और निर्मल प्रज्ञा से सम्पन्न वीर प्रभु, पूर्ण शक्तिमान, सर्वश्रेष्ठ प्राणी मात्र के मोदकारी वीर प्रभ, पर्वतराज सुमेरु के समान गुणों में सर्वश्रेष्ठ महावीर, समस्त मुनियों में
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