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________________ ( ४० ) श्रेष्ठ महावीर : कैसे ?, भगवान का सर्वथष्ठ ध्यान : शुक्लध्यान, वीर प्रभु ने सिद्धिगति कैसी और कैसे प्राप्त की ? ज्ञान और शील में सर्वश्रं ष्ठ महापुरुष महावीर, मुनियों में श्रेष्ठ महावीर : क्यों और किस तरह ?, तपः साधना के क्षेत्र में सर्वोपरि मुनिश्रेष्ठ भ० महावीर, निर्वाण मार्ग के उपदेशकों में प्रधान ज्ञातपुत्र महावीर, ऋषियों में सर्वतोमहान् ऋषिवर वर्द्धमान स्वामी, त्रिलोक में सर्वोत्तम श्रमण भ० महावीर, ज्ञानियों में सर्वश्रेष्ठ ज्ञात पुत्र महावीर, अनेक विशिष्ट गुणों के निधि : भ० महावीर, अन्तरंग दोषों एवं पापों से सर्वथा दूर अर्हन् महर्षि, मत-मतान्तरों के बीच भी सत्य और संयम में स्थिर, कठोर त्यागमार्ग के उत्कृष्ट साधक : वीर प्रभु, जिनेन्द्रभाषित धर्म के आराधकों की गति । सप्तम अध्ययन : कुशोल-परिभाषा : ६७३-७१३ इस अध्ययन का संक्षिप्त परिचय, शील-अशील और कुशील का निक्षेपदृष्टि से अर्थ, जीवों के प्रकार तथा उनके नाश से अपनी महाहानि, प्राणियों का विनाशकर्ता स्वयं विनष्ट होता है, कर्म कदापि और कहीं भी नहीं छोड़ते, अग्निकाय समारम्भी कुशीलधर्मा है, साधक के लिए अग्निकाय समारम्भ का निषेध, अग्निकाय का आरम्भ : अनेक जीवों के वध का कारण, वनस्पति के विभिन्न अंगों का छेदन : उनका विनाश है, बीजों का नाश : उनकी संतान वृद्धि का नाश, आत्मनाश, वनस्पतिनाशक अल्पायु या अनियतायु होते हैं, एकान्त दुःखी संसार में बोधिलाभ ही महत्त्वपूर्ण, ये सस्ते मोक्ष के दावेदार, जलस्पर्श एवं अग्निहोत्रादि क्रियाओं से मोक्ष कैसे ? अत्यन्त दुःखमय परिणाम जानकर प्राणिहिंसा से बचो, स्वाद-लोलुपता, शोभा एवं शृगार की भावना संयमनाशिनी है, सुशील-साधु-चर्या की ओर इशारा, गार्हस्थ्य छोड़कर भी स्वादिष्ट भोजन के चक्कर में, भोजन के लिए धर्मोपदेश और गुण-कीर्तन क्यों ? पेट के लिए कितनी दीनता? कितनी चापलसी ? साध का वेष : परन्तु साधुत्व से रहित थोथा निःसार, सुशील साधक का आचार-विचार, सुशील साधु की संयम साधनाएँ, सुशील साधु चार बातों से सावधान रहे, सुशील साधक द्वारा अंतिम मंजिल पाने का उपाय । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003599
Book TitleAgam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorHemchandraji Maharaj, Amarmuni, Nemichandramuni
PublisherAtmagyan Pith
Publication Year1979
Total Pages1042
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sutrakritang
File Size17 MB
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