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( ३७ ) दोष ही क्या ? एक मिथ्या मान्यता, बच्चों पर आसक्त पूतना की तरह ये कामासक्त अनार्य !, दुष्कर्मी लोग पछताते हैं, क्यों व कब?, समय पर चेतने वाले साधक वाद में पछताते नहीं, अविवेकी साधक के लिए स्त्री परीषह दुर्लघ्य, स्त्रीसंसर्ग विमुख : सर्व उपसर्ग विजेता, सर्व उपसर्ग विजेता साधक ही संसारसागर पारगामी होता है, उपसर्ग विजयी साधु कौन, क्या करे ? सर्वत्र सर्वदा अहिंसा पालन से ही निर्वाण प्राप्ति, उपसर्गों पर विजय, धर्माचरण : मोक्ष प्राप्ति तक।
चतुर्थ अध्ययन : स्त्रीपरिज्ञा : ५०२-५७१ चतुर्थ अध्ययन का संक्षिप्त परिचय, निक्षेप की दृष्टि से स्त्री के
विभिन्न अर्थ, स्त्री के विपक्षभूत पुरुष के निक्षेपदृष्टि से अर्थ । प्रथम उद्देशक : स्त्रीसंसर्ग से शीलनाश
५०६-५४६ दीक्षा के समय साधक का संकल्प, अविवेकी स्त्रियों द्वारा साधु को शीलभ्रष्ट करने का प्रयत्न, स्त्रियों द्वारा काम-जाल में फंसाने के लिए अंग प्रदर्शन, एकान्त में भोग्य पदार्थों की मनुहार : कामपाश के बन्धन, स्त्रियों के वशीभूत न होने के नुस्खे, स्त्रियों के मधुर शब्दों को मोहबंधन माने, चतुर स्त्रियों के द्वारा साधु को आकर्षित करने के उपाय, सिंह की तरह संवृत पुरुषसिंह को भी वश में कर लेती है, एक बार मोहपाशबद्ध साधु छूट नहीं सकता, स्त्री के मोहपाश में बंधने से पश्चात्ताप, स्त्रीसंसर्ग विपलिप्त कण्टकसम त्याज्य, स्त्रीसंसर्गरूप निन्द्यकर्म में आसक्त कुशील है, इन स्त्रियों के साथ भी साधु संसर्ग न करे, एकान्त स्थान में स्त्री-सम्पर्क के कारण शंका और प्रतिक्रिया, श्रमण एवं स्त्री के प्रति लोगों का क्रोध और शंका, स्त्री-परिचयी श्रमण समाधियोग से भ्रष्ट हैं, मिश्रमार्गी प्रबजितों का बकवास, ये शुद्धता की दुहाई देने वाले प्रच्छन्न पापी !, प्रच्छन्न पापी कुशील द्रव्यलिंगी की दुश्चेष्टाएँ, स्त्री-पोषण के अनुभवी बुद्धिशील भी स्त्री वशीभूत हो जाते हैं, परस्त्रीसंसर्ग का इहलौकिक भयंकर दण्ड, परस्त्रीगामी द्वारा भयंकर दण्डसहन, किन्तु पाप से विरत नहीं, श्रु ति, युक्ति और अनुभूति से काम बुरा, किन्तु दुस्त्याज्य, स्त्रियों के मन, वचन, कर्म से विभिन्न रूप, नारी : साध्वी बनने के बहाने साधु को ठगने वाली, स्त्री श्राविका के बहाने साध को फंसाती है, स्त्री के स्पर्श से भी कितना अनर्थ ! स्त्री-मोहित सदनुष्ठान भ्रष्ट
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