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वैतालीय : द्वितीय अध्ययन – द्वितीय उद्दे शक
व्याख्या
बहुजन प्रशंसनीय धर्म का आचरण कैसे करे ?
धर्म मानवमात्र के द्वारा वन्दनीय एवं श्लाघ्य है, क्योंकि वह प्राणिमात्र के लिए उपकारक है । धर्म अपने पालन एवं रक्षण करने वाले का पालन एवं रक्षण करता है । धर्म के पालन से मानव जीवन सुखी, शान्त और आनन्दमय रहता है । जैनशास्त्रों में बताया है कि धर्म उत्कष्ट मंगल है । धर्म इस लोक और परलोक में हित, सुख, निःश्रेयस के लिए और समर्थ बनाने के लिए है । जिस धर्म का पालन यहाँ किया जाता है, वह परलोक में भी साथ जाता है । इतने महान् उपकारी धर्म को भला कौन प्रशंसनीय, वन्दनीय, नमस्करणीय, मंगलमय और श्लाघ्य नहीं कहेगा ? अतः उक्त नमस्करणीय धर्म का पालन करने के लिए साधक को सदा संवृत रहना चाहिए । संवृत के यहाँ तीन अर्थ हो सकते हैं । एक अर्थ हैसावधान रहना। दूसरा अर्थ है अपनी आत्मा को बाह्य विषयों, कषायों से गुप्तसुरक्षित रखना । तीसरा अर्थ है-अपने जीवन में आते हुए कर्मों (आस्रवों) का संवरण – निरोध करके रहना, रोक कर रहना । यहाँ अभिप्रेत अर्थ यह हो सकता है कि साधक नमस्करणीय धर्म में आत्मा को सुरक्षित, निरुद्ध करके रखे |
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दूसरा उपाय धर्म में ओतप्रोत या तल्लीन रहने का यह बताया है कि 'सव्वट्ठेहि गरे अनिस्सिए' अर्थात् - साधनाशील मानव संसार के समस्त मनोज्ञ-अमनोज्ञ पदार्थों का विषयों में अनिश्रित रहे, उनके मोह-ममत्व से दूर रहे | वास्तव में शुद्ध साधु-धर्म का आचरण तभी हो सकता है कि धर्माचरण में उपयोगी उपकरणों या शरीर संघ गुरु आदि के प्रति भी मोहासक्ति से रहित होकर विचरण करे तथा अन्य सांसारिक या वैषयिक पदार्थों के प्रति तो बिलकुल लगाव न रखे । अपनी निश्राय में उन पदार्थों को बिलकुल न रखे ।
धर्म में लीन और सुदृढ़ रहने का तीसरा उपाय शास्त्रकार ने बताया है'हद इव समा अणाविले' अर्थात् हद - तालाब की तरह सदा स्वच्छ, निर्मल रहे। तालाब इसलिए स्वच्छ जल से परिपूर्ण रहता है कि उसमें अनेक जलचरों का संचार होता रहता है । इसी प्रकार साधु भी संघरूपी तालाब में अनेक प्राणियों के सम्पर्क में आने पर या संघ में अनेक साधुओं के संचार के कारण स्वच्छ संघ सरोवर में निर्मल रहे । क्योंकि जब जीवन में हिंसा, असत्य आदि अधर्मों से गंदगी प्रविष्ट होगी, साधु-जीवन स्वच्छ नहीं रह सकेगा । साधु-जीवन स्वच्छ नहीं रहेगा
१ 'धम्मो मंगलमुक्किट्ठे' - दशवैकालिक सूत्र ।
२ इहलोग - परलोग हियाए, निस्सेस्साए, सुहाए, खम्माए, अणुगामियत्ता भवई ।
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