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सूत्रकृतांग सूत्र
भावार्थ जैसे सर्प अपनी केंचुली को एकदम छोड़ देता है, वैसे ही श्रेयस्कामी साधु आवरण की तरह लगे हुए अष्टकर्मरूपी मल का त्याग कर देता है। ऐसा जानकर अहिंसाव्रती (माहन) संयमी मुनि कर्मबन्ध के कारण गोत्र, जाति आदि अष्टविध मद नहीं करते। तथा वे दूसरों की निन्दा भी नहीं करते हैं, क्योंकि दूसरों की निन्दा कल्याण का नाश करती है।
व्याख्या
कर्मादानरूप मद एवं निन्दा का त्याग आवश्यक
इस शास्त्र का प्रारम्भ से ही कर्मबन्धनों के कारणों को जानकर उका त्याग करने की शिक्षा देना उद्देश्य रहा है। प्रथम अध्ययन में भी कर्मबन्धन के कारण जानकर उनका निवारण करने का स्वर प्रायः प्रत्येक गाथा में मुखरित रहा है और इस दूसरे अध्ययन में भी यही स्वर मुख्य रहा है। दूसरे अध्ययन के द्वितीय उद्देशक में भी मद एवं निन्दा को भी कर्मबन्धन के विशिष्ट कारण बताकर उनका त्याग करने की प्रेरणा दी है। उसके लिए गाथा के प्रारम्भ में उपमा देकर समझाया हो कि जैसे साँप अपनी केंचुली को एकदम छोड़ देता है, फिर उसकी ओर झाँकता भी नहीं, वैसे ही मोक्षाभिलाषी संयमी साधक अष्टविध कर्मों (कर्मबन्धनों) का सहसा त्याग कर दे, पुनः उनकी ओर झाँके भी नहीं। किन्तु मुनि बन जाने, घरबार छोड़ देने और धनसम्पत्ति आदि का त्याग कर देने के बाद भी पूर्वसंस्कारवश वह अपने द्वारा त्यक्त जाति, कुल, गोत्र, वंश, धन-वैभव, रूप, शरीरबल आदि अनित्य और कर्मबन्ध के कारणभूत पदार्थों का अनित्य और कर्मबन्ध के कारणभूत पदार्थों का मद करता रहता है। साथ ही मुनि बन जाने पर शास्त्रज्ञान, पाण्डित्य, लाभ, तपस्या, अथवा उच्चपद, लब्धि या बौद्धिक ऋद्धि आदि का अहंकाररूपी सर्प उसके दिल दिमाग में फुफकारता रहता है। इन मदों के आवेश में आकर वह अपने से किसी प्रकार की शक्ति में न्यून या दुर्बल व्यक्ति को अथवा दूसरों को नीचा दिखाकर अपना उच्चत्व स्थापित करने की धुन में दूसरों की निन्दा, बदनामी करता रहता है। दूसरों को नीचा दिखाने या लोगों की दृष्टि में उन्हें गिराने की वत्ति. या दूसरों से ईर्ष्या करने, दूसरों की तरक्की या यशकीति फैलती देखकर मन ही मन कुढ़ना, जलना, दूसरों पर मिथ्यादोषारोपण करना, दूसरों की चुगली करना आदि सब निन्दा के अन्तर्गत हैं। किसी भी प्रकार की निन्दा पाप उत्पन्न करती है। किसी भी प्रकार की निन्दा करना भयंकर कर्मबन्धन का कारण है। साधक को आत्मकल्याण के बाधक निन्दा की वृति से सदैव दूर रहना चाहिए। निन्दा भी अभिमानजनित होने के कारण मान कषाय के अन्तर्गत है। कषाय का
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