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( ३४ ) साधक, और भी अनुकूल उपसर्ग, कायर असंयमियों का पतन, वीर ही मोक्ष के महापथ को पाते हैं, वैदारक पथ पर आने
वालों से। द्वितीय उद्देशक : अभिमानादि त्याग का उपदेश
३२१-३७१ कर्मादानरूप मद एव निन्दा का त्याग आवश्यक, परतिरस्कार एवं परनिन्दा : दोषों की जननी, उत्कर्ष और अपर्णा में सम रहे, समता का आराधक क्या करे ? समभावपूर्वक संयम में स्थिर रहने का उपाय, स्थितप्रज्ञ समताधर्मी मुनि का धर्म, बहुजन प्रशंसनीय धर्म का आचरण कैसे करे ? प्रथम धर्म : प्राणिघात से निवृत्ति, आरम्भ से परे धर्मपारंगत मुनि परिग्रह से दूर, उभयलोक दुःखप्रद परिग्रह में अनासक्ति ही हितावह, परिजनसंसर्ग एवं गर्व : मुनि के लिए त्याज्य, योग्य मुनि को एकाकी चर्या से लाभ, शून्यगृह में निवास की साधुमर्यादा, जहाँ सूर्य अस्त : वहीं साधु का निवास, शून्यागारस्थ मुनि त्रिविध उपसर्ग सहन करे, जीवन और पूजाप्रतिष्ठा की आकांक्षा से दूर ही अभ्यस्त, राजादि से संसर्ग : असमाधिकारक, कलहकारी साधु : संयम का नाशक, सामायिकचारित्री साधु जीवन की आचार मर्यादा में दृढ़, टूटा जीवन : गर्व किस पर ?, मायाचार और स्वेच्छाचार से साधु दूर रहे, कुशल द्य तकार द्वारा कृत नामक स्थान-ग्रहण, चतुर छू तकार की तरह सर्वोत्तम धर्म ग्रहण करो, दुर्जेय कामनिवृत्त साधक ही अर्हद्धर्मानुयायी, उत्थित-समुत्थित साधक कौन और कैसे ? समाधि के मूल-मंत्र, संयमी पुरुष की जीवननीति, धर्मनिष्ठ विवेकी संयमी वही जो कषाय-विजयी हो, आत्मकल्याण के कुछ सूत्र, सामायिक आदि का कितना श्रवण, कितना आचरण ? संसारसागर से कौन
और कैसे पार हुए? तृतीय उद्देशक : उपसर्ग-सहन
३७२-३६६ अज्ञानजनित कर्मापचय : संयम से, कामिनी संसर्ग त्याग ही मुक्त सदृश बनाता है, रात्रिभोजनविरति सहित महाव्रतों का धारण क्यों और कैसे ?, सुख-भोगों के पीछे जीवन समाधि को न समझने वाले !, भार ढोने में असमर्थ मरियल बैल विषममार्ग पर नहीं चल सकता, कामी के लिए शास्त्रकार का उचित मार्गदर्शन, साधु काम का त्याग क्यों और कैसे करे ? क्षणभंगुर जीवन में विषयासक्ति
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