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सूत्रकृतांग सूत्र
आदि को छोड़ता नहीं । वह इस भ्रम में रहता है कि इतना कठोर तप और क्रियाकाण्ड करने पर तो मुक्ति अवश्य हो जाएगी, परन्तु अज्ञान, मोह और माया आदि के मिल जाने से वे भी अग्निशर्मा की तरह अनन्तकाल तक संसार परिभ्रमण के कारण बन जाते हैं। मुक्ति की शर्त है.---कषायों, रागद्वषों एवं तज्जनित कर्मों से मुक्ति । गर्भवास में अनन्त बार आने का अर्थ ही है--- अनन्तकाल तक जन्म-मरणरूप संसार में चक्कर काटना । अगली गाथा में पापकर्मों से विरत होने का उपदेश देते हैं
मूल पाठ पुरिसोरम पावकम्मुणा, पलियंतं मणुयाण जीवियं । सन्ना इह काममुच्छिया, मोहं जंति नरा असंवुडा ॥१०॥
संस्कृत छाया पुरुष ! उपरम पापकर्मणा, पर्यन्तं मनुजानां जीवितम् । सन्ना इह काममूच्छिताः, मोहं यान्ति नरा असंवृताः ॥१०॥
___ अन्वयार्थ
(पुरिस) हे पुरुष! (ओरम पावकम्मुणा) पापकर्म से उपरत–निवृत्त हो जा। (मणुयाण) मनुष्यों का (जीविर्य) जीवन (पलियंत) देरसबेर से अन्त होने वालानाशवान है। (इह) इस संसार में या इस जन्म में (सन्ना) जो आसक्त हैं तथा (काममुच्छिया) काम-भोगों में मूच्छित -- गृद्ध हैं, (असंवुडा) तथा जो हिंसा, झूठ, चोरी आदि पापों से निवृत्त नहीं हैं, (नरा) वे मनुष्य (मोहं) मोह को (जंति) प्राप्त करते हैं।
भावार्थ हे पुरुष ! तू पापकर्मों से लिप्त है, अतः उससे निवृत्त हो जा। मनुष्यों का जीवन नाशवान है। इस संसार में या इस जन्म में जो मनुष्य आसक्त हैं तथा काम-भोगों में मूच्छित हैं एवं हिंसा आदि पापों से विरत नहीं हैं, वे मोह के घेरे में बन्द हो जाते हैं ।
व्याख्या पापकर्मों से निवृत्ति का उपदेश
पूर्वगाथा में बताया गया था कि मिथ्यादृष्टियों की बतायी हुई तपस्या या साधना से भी अज्ञान एवं कषायनिवृत्ति न होने के कारण पापकर्मों से निवृत्ति नहीं
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