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सूत्रकृतांग सूत्र
शास्त्र भूत-भविष्य वर्तमान — त्रिकालसत्य को बतलाता है । किन्तु अन्यतीर्थी रत्नत्रय से भिन्न पदार्थ को मोक्ष का मार्ग बताकर सस्ते सुलभ आसान तथाकथित मोक्षपथ (जो कि एक तरह से संसारपथ ही है) का सब्जबाग लोगों को बताते हैं । उनके जाल से बचने के लिए भगवान् ऋषभदेव अपने पुत्रों से कहते हैं – शिष्यो ! देखो, अब उन लोगों के मायाजाल से भी तुम्हें बचना है, जो स्थूलदृष्टि से देखने वालों को वे संसार की अनित्यता जानकर विरक्त से होकर बाहर से परिग्रह का त्यागकर प्रव्रज्या ग्रहण करके मोक्ष के लिए अभ्युद्यत हुए जान पड़ते हैं परन्तु संसारसागर को पार करना चाहते हुए भी मोक्षमार्ग का सम्यग्ज्ञान न होने के कारण उसे पार नहीं कर सकते । वे लोग यहाँ के लोगों के सामने मोक्ष की या उसके उपाय की कुछ छुटपुट कोरी बातें ही करते हैं । केवल तत्त्वज्ञान बघारने से उनका कल्याण कैसे हो सकता है । यह आध्यात्मिक जगत् की जानी-मानी बात है कि जो केवल बन्ध-मोक्ष की लम्बी-चौड़ी बातें ही करते हैं, बन्ध का त्यागकर मोक्ष के लिए अनुष्ठान नहीं करते या मोक्षमार्ग का सम्यग्ज्ञान न होने के कारण पशोपेश में पड़े रहते हैं । उन्हें न लोक का ज्ञान है और न मोक्ष का । ऐसी दशा में शिष्यो ! यदि तुम लोग ऐसे अनाड़ी की शरण में जाकर उनके पथ को अपना लोगे तो कैसे इहलोक और परलोक को जान सकोगे ? इहलोक - परलोक से अनभिज्ञ होकर तुम लोक से परे जो मोक्ष है, उसे भी कैसे जान सकोगे ? अथवा गृहस्थधर्म ( इहलौकिक ) और प्रव्रज्या - धर्म (पारलौकिक ) को कैसे जान सकोगे ? अथवा आरं यानी संसार को और पारं यानी मोक्ष को तुम कैसे जान - - समझ सकोगे ? अतः जो पुरुष इन संसार-मोक्ष दोनों की वास्तविकता से अनभिज्ञ साधकों के चक्कर में पड़ जाता है, वह 'इतो भ्रष्टस्ततो भ्रष्टः' होकर संसारसागर के मझधार में ही डूबता -उतराता हुआ कर्मों के द्वारा पीड़ित किया जाता है ।
तपस्या से तप्त और अकिंचन अन्यतैथिक साधकों को मोक्ष क्यों नहीं प्राप्त होगा ? इसके समाधानार्थ शास्त्रकार आगामी गाथा प्रस्तुत करते हैं
मूल पाठ
इ. विगि किसे चरे, जइवि य भुंजिय मासमंतसो । जे इह मायाइ मिज्जइ, आगंता गब्भाय णंतसो || ६ ||
संस्कृत छाया
यद्यपि च नग्नः कृशश्चरेत्, यद्यपि च भुंजीत मासमन्तशः । य इह मायादिना मीयते, आगन्ता गर्भायानन्तशः || ६ ||
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