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लिए सतत यत्नशील रहते हैं, भण्डारीजी। अनेक सेवा एवं शिक्षा संस्थाओं के निर्माण सथा विकास में भण्डारीजी का योगदान इतिहास की वस्तुवृत्त है। साहित्य प्रकाशन में भी आपकी सहज अभिरुचि है। अनेक प्रकाशन आपकी प्रेरणा से ही प्रकाश में आए हैं, मुनिश्री की यह कर्मधारा निरन्तर प्रवहमान रहै, यही महाश्रमण भगवान् महावीर के चरण कमलों में हार्दिक अभ्यर्थना है ।
निर्मल व्याख्या, कुशल सम्पादन और मंगल प्रेरणा की उपयुक्त पावन त्रिवेणी में स्नात सूत्रकृतांग का प्रस्तुत संस्करण आग माभ्यासी स्वाध्यायप्रेमी सज्जनों द्वारा स्वागतार्ह है। पूर्व प्रकाशित प्रश्नव्याकरण सूत्र के समान ही प्रस्तुत आगम भी आशा है, विद्वानों एवं सर्व साधारण जनों में समुचित प्रतिष्ठा पाएगा....." मानव जाति के कल्याण-पथ पर दिव्य आलोक विकीर्ण करेगा । अन्तर्मन के कणकण से शत-शत साधुवाद ।
वीरायतन, राजगृह ज्येष्ठ गंगा दशहरा वि० सं० २०३६ सन् १९७६ ई०
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