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श्री सूत्रकृतांगसूत्र : : प्रथम श्रुतस्कन्ध
विषयानुक्रमणिका
उपोद्घात
सूत्रकृतांग की पृष्ठभूमि, सूत्रकृतांग की सार्थकता, सूत्रकृतांग की रचना कब, किसके द्वारा, कैसी मनस्थिति में ? सूत्रकृतांग की नित्यता, सूत्रकृतांग के अध्ययनों और विषयों का परिचय, शास्त्र की उपादेयता के लिए चार अनुबन्ध, शास्त्र की उपादेयता के पाँच निमित्त ।
प्रथम अध्ययन : समय : १८-२८० समय : प्रथम अध्ययन : एक विश्लेषण
१८-२० प्रथम अध्ययन के उद्देशक और अर्थाधिकार । प्रथम उद्देशक
२१--१३८ बोध ही मनुष्य के लिए सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण, बोध क्या और किसका ?, बन्धन को जानो, समझो और तोड़ो, बन्धन की परिभाषा कारण और प्रकार, बन्धन का स्वरूप व उसे तोड़ने के सम्बन्ध में प्रश्न, परिग्रह : बन्धन का प्रधान कारण, परिग्रह का लक्षण और पहिचान, परिग्रह के दो रूप, परिग्रह रखना, रखाना और अनुमति देना, अनर्थ का मूल, परिग्रह दुःखरूप क्यों और कैसे ?, हिंसा : स्वरूप, कारण और परिणाम, हिंसा क्या और कैसे ?, हिंसा कृत, कारित, अनुमोदित रूपों में समान, असत्य, अब्रह्मचर्य एवं स्तेय भी बन्धन के कारण, जन्म, संवास एवं अति संसर्ग ममत्व का कारण, वन्धन तोड़ने का उपाय, परसमय मिथ्यात्व के कारण : क्यों और कैसे ? पंचमहाभूतवादी चार्वाक मत का स्वरूप और विश्लेषण, आत्माद्व तवाद का स्वरूप और विश्लेषण, आत्माद्वैतवाद का निराकरण, आत्मा अनेक : किन्तु शरीर के साथ समाप्त, पुण्य-पाप का अभाव : एक दृष्टि, आत्मा का कर्तृत्व : एक विश्लेषण, तज्जीव-तच्छरीरवादी मत का निराकरण, प्रत्यक्ष सिद्धलोक और विचित्रता की सिद्धि के लिए अकारकवादी सांख्यमत का
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