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सूत्रकृतांग सूत्र
प्रेरक हैं। मनुस्मति के अनुसार ऐसे परिव्राजक गृहस्थ के पंचशूना' (हिंसोत्पादक स्थान) के व्यापार से युक्त हैं। इसी बात को शास्त्रकार कहते हैं--हिच्चा णं पुव्वसंजोगं, सिया किलोवएसगा।
_ 'किच्चोवएसगा' शब्द कृत्य और उपदेशक दो शब्दों से बना है । कृत्य का अर्थ है--कार्य---लावध अनुष्ठान । यह लावद्य अनुष्ठान प्रधानतया गृहस्थ करते हैं, इसलिए कृत्य का उपलक्षण से गृहस्थ अर्थ भी होता है । गृहस्थों के सावध कृत्यों के उपदेशक 'किच्चोवएसगा' कहलाते हैं। 'सि' का अर्थ सित या श्रित होता है; अर्थात् आरम्भ-परिग्रह में आसक्त; अथवा प्रबल मोहपाश में बद्ध-यह अर्थ भी होता है।
__ प्रश्न होता है, ऐसा वे क्यों करते हैं ? किन कुसंस्कारों से प्रेरित होकर वे ऐसा करते हैं ? इसके उत्तर में शास्त्रकार कहते हैं-----'एए जिया""पंडियमाणिणो।' आशय यह है कि उन अन्यतीथिक लोगों ने गृहत्याग करके प्रव्रज्या तो ले ली, किन्तु काम, क्रोध, लोभ, मोह, अभिमान आदि विकारों को जीत नहीं सके। उनके कुसंस्कार प्रबलरूप से उनमें विद्यमान हैं, उन्होंने वेष बदला है, जीवन अभी तक नहीं बदला । बाना तो बदल लिया, लेकिन अपनी बान (आदत) नहीं बदली।
दूसरा कारण यह है कि वे स्वयं अभी बाल हैं। जैसे बालक सत्-असत् का विवेक न होने के कारण जो मन में आये सो कह देते हैं, वैसे ही ये अन्यतीथिक तथाकथित परिव्राजक भी यथार्थ मोक्षमार्ग से अनभिज्ञ हैं, इन्हें बालकवत् कहने-करने का भान नहीं है । साथ ही वे तत्त्वज्ञान से रहित होते हुए भी अपने आपको तत्त्वज्ञ एवं पण्डित मानते हैं। प्रायः कई अन्यतीर्थी गृहत्यागी का वेष पहनते ही अपने आपको धुरंधर विद्वान्, उपदेशक और मोक्षपथिक मान बैठते हैं। परन्तु वैसी योग्यता के अभाव में वे अपना बहुत अधिक मूल्यांकन कर लेते हैं । इसीलिए किसीकिसी प्रति में 'जत्थ बालेऽवसीयइ' पाठ भी मिलता है। उसका भावार्थ यह है कि जिस अज्ञान में पड़कर अज्ञजीव दुःखित होते हैं, उसी अज्ञान में ये अन्यतीर्थी वेषधारक पड़े हैं। 'भो न सरण'----सुधर्मास्वामी अपने शिष्यों को भगवान् महावीर के द्वारा प्रतिपादित बोधवाक्य को दोहराते हैं—'भो' हे शिष्यो ! 'न सरणं' ऐसे
१. पंचशूना गृहस्थस्य चुल्ली पेषण्युपस्करः । कुण्डनी चोदकुम्भश्च वध्यन्ते यास्तु वाहयन् ।।
-गृहस्थ के घर में पाँच कसाईखाने (हिंसा के उत्पत्तिस्थान) होते हैं जिन्हें निभाता हुआ वह हिंसा में प्रवृत्त होता है । वे पाँच हैं-~-चूल्हा, चक्की, झाडू, ऊखली और पानी का स्थान ।
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