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समय : प्रथम अध्ययन तृतीय उद्देशक
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गूढ़माया के कारण कुगति का कारण बनता है । हाँ, बीच-बीच में वे जो कुछ यौगिक क्रियाएँ करते हैं, या अज्ञानपूर्वक कष्ट सहते हैं अथवा तप करते हैं, उसके फलस्वरूप उन्हें स्वर्ग की प्राप्ति हो जाती है, पर वहाँ भी उन्हें असुरकुमारों में और वह भी अत्यन्त निम्नकोटि के किल्वषीदेवों में स्थान मिलता है । किल्विषीदेव अत्यन्त अल्पऋद्धि, अल्पशक्ति और अल्पआयु वाले अधम प्रेत्यभूत ( दास या नौकर के समान ) देव होते हैं, वे प्रधान देव नहीं होते। इसी बात को द्योतित करने के लिए शास्कार कहते हैं कप्पकाल मुवज्जति ठाणा आसुरकिव्विसिया ।'
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( त्ति नेमि ) इति ब्रवीमि शब्द का विवेचन पूर्ववत् समझ लेना चाहिए । इति शब्द तृतीय उद्देशक की समाप्ति के लिए है ।
इस प्रकार सूत्रकृतांग सूत्र के प्रथम अध्ययन का तृतीय उद्देशक अमरसुखबोधिनी व्याख्यासहित पूर्ण हुआ ।
|| तृतीय उद्देशक समाप्त ॥
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