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व्याख्या
मताग्रही सिद्धिवादियों का भविष्य अन्धकारपूर्ण
पूर्वोक्त गाथाओं में जिन सिद्धिवादी शैवों आदि मताग्रहियों का निरूपण किया है, उनका भविष्य उनकी उक्त करणी के फलस्वरूप कितना अन्धकारमय हो जाता है इस बात को सर्वज्ञ तीर्थंकर भगवान् महावीर अपने ज्ञान में देखकर इस गाथा में बताते हैं - 'असंबुडा अणादीयं भमिहिति पुणो पुणो । इसका आशय यह है कि पूर्वोक्त सिद्धिवादी दार्शनिक सिर्फ अष्टसिद्धियों से मुक्तिरूप सिद्धि मानते हैं, उनके मतानुसार ऐसा प्रतीत होता है कि वे इन भौतिक उपलब्धियों (सिद्धियों) के चक्कर में पड़कर अपने को पूर्ण मान बैठते हैं । इससे आगे की आध्यात्मिक उन्नति को पूर्णविराम लग जाता है । वे फिर इन्द्रियों और मन पर संयम करने या कपायों पर विजय पाने की आवश्यकता महसूस नहीं करते । अपने मन और इन्द्रियों को खुली छोड़कर वे कुछ हठयोग की क्रियाएँ कर लेते हैं, अज्ञानपूर्वक कुछ कठोर तप भी कर लेते हैं ।
सूत्रकृतांग सूत्र
पहले तो इन्द्रियों और मन की तथा कपायों की प्रवृत्तियों को उन्मुक्तरूप से करने से उन्हें शरीर छोड़ने के बाद मुक्ति तो मिलती नहीं, उलटे कषाय और प्रमाद के फलस्वरूप तथा अपने मतीय मिथ्यात्रहरूप मिथ्यात्व के फलस्वरूप घोर कर्मबन्ध होने से बार-बार मनुष्य, तिर्यञ्च और नरक गतियों में जन्म-मरण करते हुए भटकना पड़ता है । क्योंकि कोरे ज्ञान बघारने से या ऊटपटाँग क्रियाएँ कर लेने से या अपने मिथ्यामत का धुंआधार प्रचार करने मात्र से समस्त दुःखनिवृत्तिरूप मुक्ति प्राप्त नहीं होती । वे मताग्रही लोग प्रायः यही समझते हैं कि हमें तो इस लोक में भी लाभ है, और परलोक में भी । हमारे तो दोनों हाथों में लड्डू हैं । यहाँ हमें किसी प्रकार का इन्द्रियों या मन पर संयम नहीं करना पड़ता, सभी प्रकार के विषयोपभोग की खुली छूट मिली हुई है और परलोक में हमें मुक्ति (सिद्धि ) प्राप्त होने की गारंटी मिल ही चुकी है । किन्तु यह बात निश्चित है कि जब तक सम्यग्दर्शन - ज्ञानपूर्वक सम्यक् चारित्र ( इन्द्रियमन:संयम, कषायविजय, हिंसादित्याग आदि) की साधना नहीं की जाएगी, तब तक सिद्धि (मुक्ति) कोसों दूर रहेगी । बल्कि वे अज्ञान, मिथ्यात्व, प्रमाद, विषय- कषाय तथा अविरति के वक्र में फँसे होने पर भी अपने को ज्ञानी, क्रियाकाण्डी, तपोधनी एवं मुक्तिदाता मानकर भोले जीवों को वाग्जाल में फँसाने के कारण अनादिसंसाररूप घोर अटवी में लगातार परिभ्रमण करते रहेंगे, उन्हें चिरकाल तक मुक्ति का द्वार या तट नहीं मिलेगा । वे अष्ट प्रकार की इहलौकिक सिद्धियों का भोली-भाली जनता को जो सब्जबाग दिखाते हैं, यह तो
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