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सूत्रकृतांग सूत्र
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जाता है, ईश्वर नहीं । यदि घटादि का कर्ता मा ईश्वर है तो फिर कुम्हार की क्या आवश्यकता है ?
यदि कहें कि ईश्वर सर्वव्यापक होने से निमित्तरूप में घटादि रचना में अपना व्यापार करता है, तो इस प्रकार दृष्ट की हानि और अदृष्ट की कल्पना का प्रसंग आएगा, क्योंकि घट का कर्ता कुम्हार प्रत्यक्ष उपलब्ध ( दृष्ट) होता है, उसे न मानना दृप्ट की हानि है । और घट बनाता हुआ ईश्वर कभी नहीं देखा जाता, उसे घट का निमित्त मानना अदृष्ट की कल्पना है । कहा भी है
शस्त्रौषधादिसम्बन्धाच्चत्रस्थ
I
व्रणरोहणे असम्बद्धस्य किं स्थाणोः कारणत्वं न कल्प्यते ?
( नश्तर लगाने)
अर्थात् -- चैत्र नामक पुरुष के घाव भरने में शस्त्रक्रिया एवं औषध के लेप ही कारण थे, दूसरे पदार्थ कारण नहीं थे, परन्तु उस घाव के साथ जिसका कोई वास्ता नहीं है, ऐसे ठूंठ को घाव भर जाने का कारण क्यों नहीं मान लेते ? अतः जिस वस्तु का जो कारण प्रत्यक्ष देखा जाता है, उसे कारण न मानकर जो उसका कारण नहीं देखा जाता, उसे उसका कारण मानना सर्वथा अन्याय है ।
इसके अतिरिक्त देवालय, भवन आदि का जो कर्ता है, वह सावयव, अव्यापक परतन्त्र और अनित्य देखा जाता है, इस दृष्टान्तानुसार तो ईश्वर यदि जगत् के पदार्थों का कर्ता माना जायेगा तो वह भी सावयव, अव्यापक, परतन्त्र और अनित्य ही सिद्ध होगा । इसके विपरीत निरवयव, व्यापक और नित्य ईश्वर की सिद्धि के लिए कोई दृष्टान्त नहीं मिलता, इसलिए व्याप्ति की सिद्धि न होने से निरवयव, व्यापक और नित्य ईश्वर का अनुमान नहीं हो सकता ।
जिस प्रकार कार्यत्व हेतु ईश्वर की सिद्धि नहीं कर सकता, वैसे ही पूर्वोक्त अन्य हेतु भी ईश्वर के कर्मत्व सिद्धि के लिए समर्थ नहीं हैं ।
यदि प्रतिवादीयों कहें कि ईश्वर अमूर्त और अदृश्य है, इसलिए कैसे दिखाई दे सकता है ? वह हमारी स्थूल आँखों से दृष्टिगोचर नहीं होता, तब हम पूछते हैं कि वह ईश्वर शरीरधारी है या शरीररहित ? यदि शरीररहित है, तब तो वह सृष्टि के पदार्थों को कैसे बनाएगा ? बिना शरीर या हाथ-पैर आदि अवयव के तो वह कोई भी कार्य नहीं कर सकेगा ? यदि कहें कि वह शरीरधारी है तो उसका शरीर नित्य है या अनित्य ? उसे नित्य तो नहीं कह सकते, क्योंकि वह अवयवसहित है । जो पदार्थ अवयवयुक्त ( खण्ड के रूप में ) होते हैं, वे सब घटपटादि की तरह अनित्य होते हैं । ईश्वर का शरीर भी सावयव मानने पर वह
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