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सूत्रकृतांग सूत्र
की उत्पत्ति के लिए व्यापार चिन्ता क्या कर सकता है ? फिर यह भी प्रश्न होता है कि जो देव इस लोक को बनाता है, वह मूर्त है या अमूर्त ? यदि अमूर्त है, तब तो आकाश की तरह वह अकर्ता ही रहेगा, यदि वह मूर्त है, तो कार्य की उत्पत्ति के लिए साधारण पुरुष के समान उसे भी उपकरणों की अपेक्षा रहेगी। ऐसी दशा में वह समस्त जगत् का कर्ता नहीं हो सकेगा, यह स्पष्ट है। यह लोक देव के द्वारा गुप्त (देवरक्षित) है या देवपुत्र है, यह मत तो अपने आप ही खण्डित हो जाता है, क्योंकि जब देवकृत जगत् ही सिद्ध नहीं हुआ, तब देवगुप्त या देवपुत्र सिद्ध होना तो दूर की बात है।
इसी प्रकार जगत् को ब्रह्मा द्वारा रचित बताना भी इन्हीं पूर्वोक्त दोषों और आपत्तियों से परिपूर्ण है। ईश्वरकृतवादियों का कथन युक्तिविरुद्ध
ईश्वरकारणवादियों ने जो युक्तियाँ ईश्वर को जगत्कर्ता होने के लिए दी हैं, वे भी निम्नलिखित युक्तियों से असिद्ध हो जाती हैं। उन्होंने जो अनुमान प्रयोग किया है, वह भी गलत है। घट-पट, मठ आदि को देखकर यही अनुमान किया जा सकता है कि ये सब किसी कर्ता द्वारा निर्मित हैं। क्योंकि ये कार्य हैं, परन्तु यह अनुमान नहीं किया जा सकता कि ये घटपटादि अमुक व्यक्ति के द्वारा निर्मित हैं। क्योंकि जो कार्य हैं वे सब कर्ता द्वारा किये हुए हैं, इस प्रकार कार्य की व्याप्ति कारण में गृहीत होती है, किन्तु जो-जो कार्य होता है, वह अमुक व्यक्ति के द्वारा निर्मित होता है, इस प्रकार कार्य की व्याप्ति विशिष्ट कारण में गृहीत नहीं होती। घट को देखकर यही कहा जा सकता है कि इसे कुम्हार ने बनाया है, किन्तु यह नहीं कहा जा सकता कि इसे अमुक-अमुक नाम के कुम्हार ने बनाया है। इसी तरह जगत् को देखकर यह कहा जा सकता है कि यह जगत् कारण से उत्पन्न हुआ है, परन्तु यह नहीं कहा जा सकता कि यह जगत् अमुक विशिष्ट कारण से उत्पन्न हुआ है, क्योंकि कार्य की व्याप्ति विशिष्ट कारण में नहीं होती है ।
दूसरी बात यह है कि जो व्यक्ति यह जानता है, जिसने प्रत्यक्ष देखा है कि अमुक कार्य अमुक व्यक्ति ही करता है, दूसरा नहीं कर सकता है, वह व्यक्ति उस कार्य को देखकर, उसके कर्ता उस विशिष्ट व्यक्ति का अनुमान कर सकता है, परन्तु जो वस्तु अत्यन्त अदृष्ट है, उसमें यह प्रतीति कदापि नहीं हो सकती। अर्थात् जिसकी रचना करता हुआ कोई व्यक्ति कभी किसी से देखा ही नहीं गया है, उस वस्तु को देखकर उसके विशिष्ट कर्ता का अनुमान कैसे किया जा सकता है। यदि यह कहें कि घट को देखकर उसके कर्ता-कुम्हार का अनुमान किया जाता है और
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