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________________ २१६ सूत्रकृतांग सूत्र नहीं है, नाशवान है।' इसलिए शास्त्रकार कहते हैं कि 'मारेण संथया माया' अर्थात् यमराज ने माया रची और उसी माया के द्वारा यमराज सृष्टि की रचना करता है। यही शास्त्रकार का आशय है। अब अगली गाथा में जगत् को अण्डे से उत्पन्न कहने वालों की मिथ्यापादिता प्रकट करते हैं -- मूल पाठ माहणा समणा एगे आह अंडकडे जगे । असो तत्तमकासी य, अयाणंता मुसं वदे ।।८।। संस्कृत छाया ब्राह्मणा: श्रमणा: एके, आह आहरण्डकृतं जगत् । असौ तत्त्वमकार्षीच्च, अजानन्तो मषा वदन्ति ।।८।। अन्वयार्थ (एगे) कई (महणा समणा) तथाकथित माहन (ब्राह्मण) और श्रमण (जगे जगत् को (अंडकडे) अण्डे के द्वारा कृत = उत्पन्न (आह) कहते हैं। तथा वे कहते हैं कि (य) और (असो) उस ब्रह्मा ने (तत्त) पदार्थ समूह को (अकासो) बनाया; (अयाणंता) वस्तुतत्त्व को न जानने वाले वे (मुस) ऐसे असत्य (बदे) कहते हैं । भावार्थ कई माहन (ब्राह्मण) और श्रमण यों कहते हैं कि यह जगत् अण्डे के द्वारा बनाया हुआ है। तथा वे कहते हैं कि ब्रह्मा ने तत्त्वसमूह की रचना की। वास्तव में वस्तुतत्त्व को न जानकर वे लोग झठमूठ ही ऐसी गप्पें हाँकते हैं। ४. जैसा कि श्रुति में कहा है यस्य ब्रह्म च क्षत्र उभे भवत ओदनम् । मृत्युर्यस्योपसेचनं, क इत्थं न वेद यत्र सः ॥ अर्थात्-ब्राह्मण और क्षत्रिय आदि जिसके भात (भोजन) हैं, और मृत्यु जिसके लिए शाकभाजी के समान हैं, ऐसे स्वयम्भू (विष्णु) को कौन यहीं जानता, जहाँ यह है ? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003599
Book TitleAgam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorHemchandraji Maharaj, Amarmuni, Nemichandramuni
PublisherAtmagyan Pith
Publication Year1979
Total Pages1042
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sutrakritang
File Size17 MB
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