________________
( २५ )
कि आपको ( मुझे ) सूत्रकृतांग सूत्र व्याख्यासहित सम्पादन कराना है । मैंने आपके कृपापूर्ण स्नेहानुरोध को मानकर अपने तत्त्वावधान में सूत्रकृतांग का व्याख्यासहित सम्पादन का कार्य हाथ में लिया जिसका प्रतिफल पाठकों के हाथों में है । इसकी व्याख्या के सम्पादन में अनेक ग्रन्थों में सहायता ली गई है । मैं उन सब ग्रन्थकारों के प्रति हृदय से कृतज्ञ हूँ। साथ ही श्रद्धेय श्री भण्डारीजी महाराज को कोटि-कोटि धन्यवाद देता हूँ, जो सम्पादन कार्य शीघ्र कराने के लिए सतत मेरा उत्साह बढ़ाते रहे । अगर आपके द्वारा इतना उत्साहसंवर्द्धन न होता तो मैं इतना शीघ्र इस भगीरथ कार्य को सम्पन्न नहीं करा सकता था। साथ ही अपने साथी सम्पादक प्रवचन भूषण श्री अमरमुनि जी को भी धन्यवाद देता हूँ जिनकी अविचल निष्ठा और सौजन्यपूर्ण व्यवहार से में इस कार्य में यशस्वी बना हूँ ।
सुन्दर मुद्रण के लिए ज्यों ही इस शास्त्रराज का सम्पादन पूर्ण हुआ, श्रद्धेय श्री भण्डारीजी महाराज ने इसके शीघ्र एवं सुन्दरतम मुद्रण का कार्य प्रसिद्ध सिद्धहस्त लेखक श्री श्रीचन्दजी सुराना के हाथों में सौंपा। उन्होंने शुद्ध और सुन्दर रूप में उत्तरदायित्व - पूर्ण ढंग से इसे मुद्रित करवाया है। इसके लिए वे धन्यवादाह है । सुन्दर और शुद्ध मुद्रण के लिए सुरानाजी प्रसिद्ध हैं ही ।
आशा है, इस शास्त्रराज को पढ़कर पाठक श्रुतभक्ति का परिचय देंगे और अपने जीवन में इन मंगलमय सिद्धान्तों को स्थान देंगे ।
अहिंसा निकेतन, बेलचम्पा ( बिहार ) दिनांक -- ६ ७ ७६ चातुर्मासिक पर्व
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
- मुनि नेमिचन्द्र
www.jainelibrary.org