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सूत्रकृतांग सूत्र
द्वारा निर्मित जगत् में भी होता, पर जगत् में सर्वज्ञत्व गुण नहीं दिखता | अतः ईश्वर जगत् का समवायीकारण भी नहीं है । वह कुम्हार की तरह जगत् का निमित्तकारण है । निमित्तकारण ७ प्रकार का होता है - कर्ता, कर्म, करण, सम्प्रदान, अपादान, सम्बन्ध और अधिकरण । इसमें से ईश्वर जगत् का कर्तारूप कारण है । वैशेषिकों की मान्यता भी ईश्वरकर्तृत्ववाद के सम्बन्ध में लगभग ऐसी ही है ।
'पहाणाइ तहावरे' शास्त्रकार ने लोक के कर्तृत्व के विषय में अब सांख्यमतवादियों का विचार प्रस्तुत किया है कि वे मानते हैं कि जगत् ईश्वर का किया हुआ नहीं है । उनका तर्क यह है कि यह शब्दादि प्रपंचमय जगत् सुख-दुःख, मोह आदि से युक्त है अतएव इस प्रपंच का कारण (ईश्वर) भी सुख, दुःख और मोह आदि से युक्त होना चाहिए। चूँकि ईश्वर पुरुष ( आत्मा ) है, वह सुख-दुःख आदि प्रपंचों से दूर, निर्गुण, निष्क्रिय, साक्षी, निर्लेप और अकर्ता है । अतः वह जगत् का कर्ता नहीं हो सकता । सुख-दु:ख आदि सब प्रपंच प्रकृति के कार्य हैं । अतः वही जगत् का उपादानकारण है । सत्त्व, रज और तम की साम्यावस्था को प्रकृति कहते हैं । वह प्रकृति पुरुष के भोग और मोक्ष के लिए क्रिया में प्रवृत्त होती है । यहाँ आदि शब्द यह ध्वनित होता है कि जगत् की उपादानकारण प्रकृति (प्रधान) है, उस प्रकृति से महान् ( बुद्धितत्त्व ) उत्पन्न होता है और बुद्धि से अहंकार तथा अहंकार से सोलह गण (पाँच ज्ञानेन्द्रिय, पाँच कर्मेन्द्रिय, मन और पाँच तन्मात्राएँ
१६ तत्त्व ) उत्पन्न होते हैं, सोलह गणों में से पाँच तन्मात्राओं से पंच महाभूत उत्पन्न होते हैं । इस क्रम से यह सम्पूर्ण सृष्टि उत्पन्न होती है । मूल में प्रकृति के द्वारा महदादिक्रम से स्पष्टतः सृष्टि होती है ।
हमने सांख्यदर्शन के २५ तत्त्वों का पिछले पृष्ठों में स्वरूप बताया है। वही यहाँ समझ लेना चाहिए ।
अथवा 'आदि' शब्द से काल, स्वभाव, नियति आदि के द्वारा यह जगत् कृत है । इन सबके स्वरूप का वर्णन भी पीछे हम कर आये हैं । एकान्त कालवादी काल को ही जीव अजीवमय या सुख-दुःख से युक्त जगत् का कारण मानते हैं । एकान्तस्वभाववादी कहते हैं जगत् किसी कर्ता द्वारा किया हुआ नहीं है, अपितु स्वभावकृत है। एकान्तनियतिवादी कहते - जैसे मोर के पंख नियतिवश रंगबिरंगे व विचित्र होते हैं, वैसे ही यह समस्त विश्व नियति से उत्पन्न हुआ है, नियतिकृत है । इस प्रकार विभिन्न एकान्तमतवादी जगत् की उत्पत्ति अपने-अपने मतानुसार बनाते हैं ।
'जीवाजी वसमाउते सुहदुक्खसमन्निए- ये दोनों लोक के विशेषण 1
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