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सूत्रकृतांग सूत्र
अकर्माश होता है। कहा भी है- "तह कम्माणि हम्मंति मोहणिज्जे खयंगए।" मोहनीय कर्म के क्षय होने पर सभी कर्मों का क्षय प्रायः होने लगता है।
कर्मबन्धन और कर्म मुक्ति के ज्ञान से अनभिज्ञ मिथ्यात्वग्रस्त लोगों की अन्त में क्या दशा होती है ? इसे अगली गाथा में शास्त्रकार बताते हैं---
मूल पाठ जे एयं नाभिजाणंति, मिच्छदिट्ठो अणारिया । मिगा वा पासबद्धा ते, घायमेसंति णन्तसो ॥१३॥
संस्कृत छाया ये एतन्नाभिजानन्ति, मिथ्यादृष्टयोऽनार्याः । मृगा वा पाशबद्धास्ते, घातमेष्यन्त्यनन्तशः ॥१३।।
अन्वयार्थ
(जे) जो (मिच्छदिट्ठी) मिथ्यादृष्टि (अणारिया) अनार्यपुरुष (एयं) इस अर्थ (बात) को (न) नहीं (अभिजाणंति) जानते हैं। (मिगा वा) मृग की तरह (पासबद्धा) पाश (बन्धन) में बद्ध (ते) वे मिथ्यादृष्टि अज्ञानी (णंतसो) अनन्त बार (घायं) घात को (एसंति) प्राप्त करेंगे।
भावार्थ जो मिथ्यादृष्टि अनार्य पुरुष इस अर्थ (पूर्वोक्त सिद्धान्त) को नहीं जानते, वे पाश (बन्धन) में बंधे हए मगों की तरह अनन्त बार विनाश को प्राप्त करेंगे।
व्याख्या
मिथ्यादृष्टि अज्ञानवादियों का अनन्त जन्म-मरण
इस गाथा में पुन: मिथ्यादृष्टि एवं शास्त्रविहित अनुष्ठान से अत्यन्त दूर रहने वाले अज्ञानवादियों को अपने उक्त अकृत्य का कितना दुष्परिणाम भोगना पड़ता है ? इसे बताते हैं--'जे एवं नाभिजाणंति' अभिप्राय यह है जैसे बन्धन में पड़े हुए मृग अनेक प्रकार के ताड़न, मारण आदि दुःख पाते हैं, वैसे ही अज्ञान एवं मिथ्यात्व के कारण होने वाले घोर कर्मबन्धन में बद्ध अज्ञानी जीव भी मिथ्यात्वरूपी ग्रह से ग्रस्त होकर अपने अज्ञान मत पक्ष को ऐसी दृढ़ता से पकड़ लेते हैं कि सम्यग्ज्ञान एवं
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