________________
१४८
सूत्रकृतांग सूत्र
जिससे, जिस समय, जिस रूप में होना है, वह उससे उसी समय, उसी रूप में उत्पन्न होता है। इस तरह अबाधित प्रमाण से प्रसिद्ध इस नियति के स्वरूप को कौन रोक सकता है ? यह सर्वत्र निर्बाध है।
नियतिवादी कहते हैं कि नियति एक स्वतन्त्र तत्त्व है। इस नियति से ही सभी पदार्थ नियत रूप में उत्पन्न होते हैं, अनियत रूप में नहीं। यदि नियति तत्त्व न हो तो संसार से कार्यकारण भाव की तथा पदार्थों के अपने निश्चित स्वरूप को व्यवस्था ही उठ जाएगी। इस प्रतीतिसिद्ध वस्तु का एक जगह लोप किया जाता है तो संसार से प्रमाण मार्ग ही उठ जाएगा । जैसा कि वे कहते हैं--
प्राप्तव्यो नियतिबलाश्रयेण योऽर्थः, सोऽवश्यं भवति नृणां शुभोऽशुभोवा । भूतानां महति कृतेऽपि हि प्रयत्ने,
नाभाव्यं भवति, न भाविनोऽस्ति नाशः ॥ अर्थात्-नियति (होनहार) के बल से शुभ-अशुभ जो कुछ भी मिलने वाला होता है, वह मनुष्य को अवश्य प्राप्त होता है। किन्तु जो होनहार नहीं है, वह महान् प्रयत्न करने पर भी नहीं मिलता, अथवा नहीं होता और जो होने वाला है, उसका नाश नहीं होता।
इस प्रकार इन दो गाथाओं में नियतिवाद का पूर्वपक्ष प्रबलरूप से प्रस्तुत किया गया है, अब अगली गाथा में नियतिवाद का निराकरण करते हुए उसके दुःष्परिणामों को अभिव्यक्त किया गया है
मूल पाठ एवमेयाणि जंपता, बाला पंडिअमाणिणो । निययानिययं संतं, अयाणंता अबुद्धिया ॥४॥
संस्कृत छाया एवमेतानि जल्पन्तो, बालाः पण्डितमानिनः । नियतानियतं सन्तं, अजानन्तोऽबुद्धिकाः ॥४॥
अन्वयार्थ (एव) इस प्रकार (एयाणि) इन बातों को (जपंता) कहते हुए नियतिवादी (बाला) वस्तुतत्त्व से अनभिज्ञ हैं (पंडिअमाणिणो) तथापि अपने को पण्डित मानते
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org