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सूत्रकृतांग सूत्र (ते संधि णावि णच्चा) वे पूर्वोक्त मतवादी संधि को न जानकर क्रिया में प्रवृत्त होते हैं, (ते जणा धम्मविओ न) वे लोग धर्म के रहस्यज्ञ नहीं हैं। (जे ते उ एवं वाइणो) जो पूर्वोक्त प्रकार से मिथ्या सिद्धान्त की प्ररूपणा करने वाले अन्यदर्शनी हैं (ते जम्मस्स पारगा न) वे जन्म को पार नहीं कर सकते ।।२३।।
(ते संधि णावि णच्चा) वे अन्यतीर्थी सन्धि को जाने बिना ही क्रिया में प्रवृत्त हो जाते हैं, (ते जणा धम्मविओ ण) वे लोग धर्मवेत्ता नहीं हैं। (जे ते उ एवं वाइणो) अतः जो इस प्रकार के मिथ्या सिद्धान्तों की प्ररूपणा करते हैं, (ते दुक्खस्स पारगा न) वे दुख के पारगामी नहीं होते ॥२४॥
(ते संधि णावि णच्चा) वे अन्य मतवादी संधि से अनभिज्ञ होकर क्रिया में जुट जाते हैं, (ते जणा धम्म विओ न) वे लोग धर्म के ज्ञाता नहीं हैं। (जे ते उ एवं वाइणो) जो पूर्वोक्त प्रकार से मिथ्या मत का प्रतिपादन करते हैं (ते मारस्स पारगान) वे मृत्यु को पार नहीं कर सकते ॥२५॥
भावार्थ
पूर्वोक्त अन्यदर्शनी संधि-ज्ञानावरणीय आदि कर्म विवर को न जानकर ही क्रिया में प्रवत्त होते हैं, ये लोग धर्मज्ञान से रहित हैं। जो पूर्वोक्त प्रकार से अफलवाद के समर्थक मिथ्यावादी हैं, उन्हें भगवान महावीर संसार के प्रवाह के पारगामी नहीं बताते हैं ॥२०॥
__ वे अन्यदर्शनी संधि को जाने बिना ही क्रिया में प्रवृत्त होते हैं। वे लोग धर्म के ज्ञाता नहीं है। जो पूर्वोक्त मिथ्या सिद्धान्त को मानने वाले मताग्रही हैं, वे संसार को पार नहीं कर सकते ।।२१।।
वे अन्यतीर्थी संधि (अवसर या कर्मबन्ध के मेल) को न जान कर ही क्रिया में प्रवृत्त हो जाते हैं। वे लोग धर्म के तत्त्वज्ञ नहीं हैं। जो पूर्वोक्त मिथ्या मान्यताओं के प्रतिपादक हैं, वे गर्भ में आगमन को पार नहीं कर सकते ।।२२।। ...
वे अन्य मतवादी संधि (ज्ञानावरणीयादि कर्मबन्धन के संयोजन) को जाने बिना ही अंधाधुंध प्रवृत्ति करते हैं। वे लोग धर्म के रहस्य से अनभिज्ञ हैं। इस प्रकार से मिथ्या प्ररूपणा करने वाले लोग जन्म (परम्परा) को पार नहीं कर सकते ।।२३।।
वे अन्य मतावलम्बी लोग संधि (उत्तरोत्तर पदार्थ परिज्ञान) को नहीं जान कर भी क्रिया में प्रवृत हो जाते हैं, वे लोग धर्म का सम्यक् निर्णय करने
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