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समय : प्रथम अध्ययन - प्रथम उद्देशक
ते णावि संधि णच्चा णं, न ते धम्मविओ जणा ।
जे
ते उ वाइणो एवं न ते मारस्स पारगा ||२५||
,
संस्कृत छाया
ते नाऽपि सन्धि ज्ञात्वा ये ते तु वादिन एवं ते नाऽपि सन्धि ज्ञात्वा न ते ये ते तु वादिन एवं, न ते
न ते धर्मविदो जनाः । न ते ओघन्तरा आख्याताः ॥२०॥ धर्मविदो जनाः । संसारपारगाः ॥ २१ ॥
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ते नाऽपि सन्धिं ज्ञात्वा न ते ये ते तु वादिन एवं न ते ते नाऽपि ये ते तु वादिन एवं, न ते
सन्धिं ज्ञात्वा न ते
ते नाऽपि ये ते तु ते नाऽपि
सन्धिं ज्ञात्वा न ते वादिन एवं, न ते सन्धिं ज्ञात्वा न ते
ये ते तु वादिन एवं न ते
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धर्मविदो जनाः ।
गर्भस्य
धर्मविदो
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पारगाः ॥२२॥
जनाः ।
जन्मनः
धर्मविदो
दुःखस्य धर्मविदो
जनाः ।
मारस्य पारगाः ||२५||
१२६
पारगाः ||२३||
जनाः ।
पारगाः ।।२४।।
अन्वयार्थ
(ते) वे पूर्वोक्त मतवादी - अन्यदर्शनी, (संधि) सन्धि को ( णावि) नहीं ( णच्चा ) जानकर क्रिया में प्रवृत्त होते हैं । ( ते जणा ) किन्तु वे लोग ( धम्मविओ ) धर्म के तत्त्वज्ञ (न) नहीं हैं । ( एवं ) पूर्वोक्त प्रकार के ( वाइणो ) अफलवाद को मानने और समर्थन करने वाले (जे ते उ ) जो अन्यदर्शनी हैं, (ते) उन्हें तीर्थंकर ने ( ओहंतरा) संसार के प्रवाह को पार करने वाले ( न आहिया) नहीं कहा है ॥२०॥
(ते) वे अन्यदर्शनी मतवादी, ( णावि संधि णच्चा ) संधि को नहीं जान कर क्रिया में प्रवृत्त होते हैं, (ण ते धम्मविओ जणा) वे धर्म के जानकार नहीं हैं । (जे ते उ एवं वाइणो ) जो इस प्रकार पूर्वोक्त सिद्धान्तों का प्रतिपादन करते हैं, ( न ते संसारपारगा) वे संसार सागर को पार नहीं कर सकते ||२१||
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(ते) वे (संधि) सन्धि को, ( ण णच्चा वि) बिना जाने ही क्रिया में प्रवृत्त होते हैं । (ते जणा धम्मविओ न ) वे लोग धर्म के ज्ञाता नहीं है । (जे ते उ एवं वाइणो ) जो अन्यदर्शनी ऐसे वादी हैं (ते गब्भस्स पारगा न ) वे गर्भ को पार नहीं कर सकते ||२२||
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