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सूत्रकृतांग सूत्र
अफलवादी बौद्ध आदि मतों के मिथ्या मन्तव्य का खण्डन
ये सभी बौद्धमतवादी अफलवादी हैं। क्योंकि इनके मतानुसार क्रिया करने के क्षण में ही कर्ता-आत्मा का समूल विनाश हो जाता है । अतः आत्मा का क्रियाफल के साथ सम्बन्ध नहीं होता । जब फल के समय तक आत्मा रहता ही नहीं है, तो ऐहिक और पारलौकिक क्रियाफल को कौन भोगेगा? क्योंकि इनके मत से पदार्थ मात्र क्षणिक है, आत्मा भी क्षणिक है और दान आदि सभी क्रियाएँ क्षणिक हैं। इस कारण क्रिया करते ही क्षणमात्र में सबका विनाश हो जाने पर कालान्तर में होने वाला फल कौन भोगेगा? कालान्तर स्थायी कोई अतिरिक्त भोक्ता वे मानते ही नहीं हैं।
अथवा सांख्य, बौद्ध आदि पूर्वोक्त सभी मतानुयायी अफलवादी हैं । इनमें से किन्हीं के मत में आत्मा का अस्तित्व माना है, तो भी एकान्त, अविकारी, निष्क्रिय (क्रियारहित) और कूटस्थनित्य माना है। उनके मतानुसार विकारहीन, निष्क्रिय आत्मा में कर्तृत्व या फल-भोक्तृत्व कैसे सिद्ध हो सकता है ? क्रिया से रहित एवं सदा एक से रहने वाले कूटस्थनित्य आत्मा में किसी प्रकार की कृति नहीं होती। कृति के अभाव में कर्तृत्व ही नहीं होता और कर्तृत्व के अभाव में क्रिया का सम्पादन करना असम्भव है। ऐसी स्थिति में वह सुख-दुःख के साक्षात्कार रूप फलोपभोग को कर ही कैसे सकता है ? जो सर्वथा उदासीन, सर्वप्रपंचरहित है, वह कर्ता या भोक्ता नहीं हो सकता है ?
किन्हीं के मत में पंचस्कन्धों या पंचभूतों से भिन्न आत्मा नामक कोई पदार्थ नहीं है । उनके मतानुसार आत्मा (उपभोक्ता) ही न होने से दुःख-सुखादि फलों का अनुभव कौन और कैसे कर सकेगा?
यदि कहें कि सुख-दुःख का अनुभव विज्ञानस्कन्ध करता है तो यह भी युक्तिसगत नहीं है, क्योंकि विज्ञानस्कन्ध भी क्षणिक है और ज्ञानक्षण अति सूक्ष्म होने के कारण उससे सुख-दुःख का अनुभव नहीं हो सकता।
किन्हीं के मतानुसार आत्मा क्षणिक है, क्योंकि सभी पदार्थ क्षणिक हैं और आत्मा भी उन्हीं के अन्तर्गत है। कार्यक्षण के पश्चात दूसरे ही क्षण में आत्मा का विनाश हो जाता है । ऐसी दशा में कालान्तर में होने वाले कर्मफल के साथ क्षणविनष्ट आत्मा का सम्बन्ध किस प्रकार हो सकता है ?
इसके अतिरिक्त यदि आत्मा ही नहीं है, तो बन्ध-मोक्ष, जन्म-मरण आदि की व्यवस्था भी नहीं बैठ सकेगी । मोक्ष की व्यवस्था के अभाव में शास्त्रों की तथा महाबुद्धिमानों की प्रवृत्ति निरर्थक हो जाएगी।
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