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समय : प्रथम अध्ययन - - प्रथम उद्देशक
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कभी उत्पत्ति होती है । अतएव सभी पदार्थ विधि प्रमाणों से सर्वथा नित्य सिद्ध होते हैं ।
छह पदार्थों की नित्यता की सिद्धि
ये
इस गाथा में पूर्वोक्त गाथा में उक्त छह पदार्थों को नित्य सिद्ध करने का उपक्रम किया गया है । पृथ्वी आदि पंचमहाभूत और छठा बिना कारण अथवा कारण से विनष्ट नहीं होते। क्योंकि अनुमान और आगम प्रमाण से सिद्ध हैं । सर्वथा नित्य हैं। पदार्थ का कभी विनाश नहीं होता। साथ ही यह भी असत् कभी उत्पन्न नहीं होता ।
व्याख्या
दुहओ - इसका आशय है— दोनों तरह से, यानी सहेतुक और निर्हेतुक दोनों प्रकार से ये छहों पदार्थ नष्ट नहीं होते । यह बताने का तात्पर्य यह है कि बौद्धदर्शन में विनाश निर्हेतुक (अकारण ) ही माना गया है। उनका कहना है
९. गीता में भी कहा है
आत्मा ये छहों पदार्थ
छहों पदार्थ प्रत्यक्ष,
सत् हैं और तथ्य है कि
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क्योंकि ये वास्तविक
जातिरेव हि भावानां विनाशे हेतुरिष्यते । यो जातश्च न च ध्वस्तो, नश्येत् पश्चात्स केन च ?
अर्थात् --- पदार्थों की उत्पत्ति (जन्म) ही उनके विनाश का कारण है । जो पदार्थ उत्पन्न होते ही नष्ट न हुआ, वह बाद में किस कारण से नष्ट होगा ? अतः नाश का कारण उत्पत्ति है । उत्पत्ति के अनन्तर ही पदार्थ का नाश हो जाता है । यदि उसी समय नाश न माना जाय तो बाद में विनाश का कोई कारण ही नहीं रहता । वैशेषिकदर्शन में घट आदि का विनाश डण्डे, लाठी आदि के प्रहार ( कारणों) से माना गया है । इस मत में नाश सहेतुक बताया गया है। मगर आत्मषष्ठवादियों का यह प्रबल मत है कि इन दोनों प्रकार के नाशों से आत्मा और लोक का नाश नहीं होता । अथवा 'दुहओ वि' इस पद का यह अर्थ भी सम्भव है, कि ? पृथ्वी आदि पंचमहाभूत अपने अचेतन स्वभाव से एवं आत्मा अपने चेतन स्वभाव से
'नासतो विद्यते भावो नाभावो विद्यते सतः । उभयोरपि दृष्टोऽन्तस्त्वनयोस्तत्त्वदर्शिभिः ॥
असत् कभी उत्पन्न नहीं होता और सत् का कभी अभाव ( नाश) नहीं होता । तत्त्वदर्शियों ने सत् और असत् इन दोनों का तत्त्व देख लिया है ।
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