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________________ समय : प्रथम अध्ययन - - प्रथम उद्देशक १११ कभी उत्पत्ति होती है । अतएव सभी पदार्थ विधि प्रमाणों से सर्वथा नित्य सिद्ध होते हैं । छह पदार्थों की नित्यता की सिद्धि ये इस गाथा में पूर्वोक्त गाथा में उक्त छह पदार्थों को नित्य सिद्ध करने का उपक्रम किया गया है । पृथ्वी आदि पंचमहाभूत और छठा बिना कारण अथवा कारण से विनष्ट नहीं होते। क्योंकि अनुमान और आगम प्रमाण से सिद्ध हैं । सर्वथा नित्य हैं। पदार्थ का कभी विनाश नहीं होता। साथ ही यह भी असत् कभी उत्पन्न नहीं होता । व्याख्या दुहओ - इसका आशय है— दोनों तरह से, यानी सहेतुक और निर्हेतुक दोनों प्रकार से ये छहों पदार्थ नष्ट नहीं होते । यह बताने का तात्पर्य यह है कि बौद्धदर्शन में विनाश निर्हेतुक (अकारण ) ही माना गया है। उनका कहना है ९. गीता में भी कहा है आत्मा ये छहों पदार्थ छहों पदार्थ प्रत्यक्ष, सत् हैं और तथ्य है कि Jain Education International क्योंकि ये वास्तविक जातिरेव हि भावानां विनाशे हेतुरिष्यते । यो जातश्च न च ध्वस्तो, नश्येत् पश्चात्स केन च ? अर्थात् --- पदार्थों की उत्पत्ति (जन्म) ही उनके विनाश का कारण है । जो पदार्थ उत्पन्न होते ही नष्ट न हुआ, वह बाद में किस कारण से नष्ट होगा ? अतः नाश का कारण उत्पत्ति है । उत्पत्ति के अनन्तर ही पदार्थ का नाश हो जाता है । यदि उसी समय नाश न माना जाय तो बाद में विनाश का कोई कारण ही नहीं रहता । वैशेषिकदर्शन में घट आदि का विनाश डण्डे, लाठी आदि के प्रहार ( कारणों) से माना गया है । इस मत में नाश सहेतुक बताया गया है। मगर आत्मषष्ठवादियों का यह प्रबल मत है कि इन दोनों प्रकार के नाशों से आत्मा और लोक का नाश नहीं होता । अथवा 'दुहओ वि' इस पद का यह अर्थ भी सम्भव है, कि ? पृथ्वी आदि पंचमहाभूत अपने अचेतन स्वभाव से एवं आत्मा अपने चेतन स्वभाव से 'नासतो विद्यते भावो नाभावो विद्यते सतः । उभयोरपि दृष्टोऽन्तस्त्वनयोस्तत्त्वदर्शिभिः ॥ असत् कभी उत्पन्न नहीं होता और सत् का कभी अभाव ( नाश) नहीं होता । तत्त्वदर्शियों ने सत् और असत् इन दोनों का तत्त्व देख लिया है । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003599
Book TitleAgam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorHemchandraji Maharaj, Amarmuni, Nemichandramuni
PublisherAtmagyan Pith
Publication Year1979
Total Pages1042
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sutrakritang
File Size17 MB
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