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सूत्रकृतांग सत्र
भावार्थ इस जगत में पाँच महाभूत और छठा आत्मा ये छह पदार्थ हैं, ऐसा कई मतवादी कहते हैं, फिर वे कहते हैं कि आत्मा और लोक नित्य हैं ।।
व्याख्या षट्पदार्थवादियों के मत का स्वरूप
__वेदवादी, सांख्य और वैशेषिक (शैवाधिकारी) इन तीनों का मत यह है कि इस जगत में पृथ्वी, जल, तेज, वायु और आकाश तथा छठा आत्मा ये छह पदार्थ हैं। दूसरे (भूतचैतन्यवादी आदि) वादियों के मत में जैसे ये अनित्य हैं, उस प्रकार इनके मत में नहीं हैं, इनके मत में ये नित्य हैं । सर्वथा अनित्य मानने से बन्ध और मोक्ष की व्यवस्था सिद्ध नहीं हो सकती, इस कारण ये आत्मा को आकाश की तरह सर्वव्यापी तथा अमूर्त होने के कारण नित्य मानते हैं तथा पृथ्वी आदि पंच महाभूत रूप लोक को भी अपने स्वरूप नष्ट न होने के कारण अविनाशी (नित्य) मानते हैं। यही शास्त्रकार का आशय है ।
___ अगली गाथा में इन्हीं षट्पदार्थवादियों द्वारा मान्य पृथ्वी आदि पाँच भूत तथा आत्मा के नित्यत्व को विशेषरूप से स्पष्ट करते हैं
मूल पाठ दुहओ वि ण विणस्संति, नो य उप्पज्जए असं । सव्वेऽवि सव्वहा भावा, नियत्तीभावमागया ॥१६॥
संस्कृत छाया द्विधाऽपि न विनश्यन्ति, न चोत्पद्यतेऽसन् । सर्वेऽपि सर्वथा भावाः, नियतीभावमागताः ।।१६।।
अन्वयार्थ (दुहओ वि) दोनों प्रकार से सहेतुक अथवा अहेतुक, पूर्वोक्त छहों पदार्थ (ण दिणसंति) नष्ट नहीं होते हैं। (असं य) तथा अविद्यमान-असत् पदार्थ (नो उप्पज्जए) उत्पन्न नहीं होते। (सम्वेऽवि) और सभी (भावा) पदार्थ (सव्वहा) सर्वथा (नियत्तीभाव) नित्यता को (आगया) प्राप्त हो जाते हैं ।
भावार्थ पूर्वोक्त पृथ्वी आदि पंचभूत एवं छठा आत्मा ये छहों कारणवश या बिना कारण दोनों ही प्रकार से नष्ट नहीं होते । और न ही असत् वस्तु की
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