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सूत्रकृताग सूत्र
विशिष्ट आत्मा का अभाव सा दिखाई देता है, लेकिन दूसरे पर्याय के रूप में उसकी उत्पत्ति होती है । वास्तव में विशेष पर्याय का ही उत्पाद और विनाश होता है, पर्यायवान जीव (आत्मा) का नहीं । जीव ( आत्मा ) तो अव्ययी ( शाश्वत ) द्रव्य होने से सदैव कायम रहता है ।
इससे संलग्न जो तीसरी बात वादी ने कही थी कि 'धर्मीरूप आत्मा न होने से उसके धर्म पुण्य-पाप भी नहीं हैं, यह कथन भी अयुक्त है । क्योंकि हमने पूर्वोक्त अनुमानों और श्रुतिरूप प्रमाणों से आत्मा की सिद्धि कर दी है । आत्मा की सिद्धि हो जाने पर उसके धर्म की सिद्धि स्वतः ही हो जाती है । धर्मीरूप आत्मा सिद्ध होने पर उसके धर्मरूप पुण्य पापों की सिद्धि भी समझ लेनी चाहिए । अगर पुण्य-पाप न होते तो जगत की विचित्रता भी न दिखाई देती । क्योंकि जगत की इस दृश्यमान विचित्रता का अन्य कोई स्पष्ट कारण नहीं है । जगत में प्रत्यक्ष दिखाई देने वाली विचित्रता का अपलाप नहीं किया जा सकता । अतः जगत की विचित्रता की अन्यथानुपपत्ति से उस विचित्रता को उत्पन्न करने वाले पुण्य-पाप को अवश्य स्वीकार करना चाहिए |
तज्जीव- तच्छरीरवादी ने जगत की विचित्रता स्वभाव से सिद्ध करने के लिए जो पत्थर के टुकड़ों का दृष्टान्त दिया है, वह भी युक्तिसंगत नहीं है, क्योंकि पत्थर के टुकड़ों में एक का देवमूर्ति बनना और दूसरे का पैर धोने की शिला बनना, स्वभाव से नहीं हुआ है, बल्कि ये दोनों टुकड़े जो तथारूप बने हैं, उनके पीछे उन पत्थरों के उपभोक्ताओं या स्वामियों का कर्म कारण है । उनके स्वामियों के कर्मवश ही वे दोनों शिला के टुकड़े वैसे हुए हैं। इसलिए पुण्य-पाप के अस्तित्व से इन्कार करना प्रत्यक्षानुभूत वस्तु से इन्कार करना है ।
आत्मा का अभाव सिद्ध करने के लिए जो केले का स्तंभ आदि अनेक दृष्टांत दिये गये थे, वे भी केवल वाचालता के नमूने हैं, क्योंकि इससे पूर्व युक्ति समूह के द्वारा परलोकगामी, पंचभूतों से भिन्न, साररूप आत्मा सिद्ध कर दिया गया है । अतः इस सम्बन्ध में अधिक विस्तार की आवश्यकता नहीं है ।
प्रत्यक्षसिद्ध लोक और विचित्रता की सिद्धि के लिए
लोए तेस कओ सिया - इस पंक्ति का अर्थ एक और भी है, वह इस प्रकार है कि 'उन भूतों से भिन्न आत्मा का अपलाप करने वाले तज्जीव- तच्छरीर वादियों के मत से यह प्रत्यक्षसिद्ध कर्ममय लोक (संसार) कैसे संगत हो सकेगा ?' जहाँ कर्मफलों का अनुभव किया जाय, उसे लोक कहते हैं । यह चर्तुगतिक संसार ही
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