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________________ समय : प्रथम अध्ययन --- प्रथम उद्देशक इसी प्रकार अनुमान प्रमाण से भी आत्मा की सिद्धि होती है । जैसे- आत्मा है, क्योंकि उसका असाधारण गुण पाया जाता है, जैसे चक्षुरिन्द्रिय । यद्यपि अतिसूक्ष्म होने के कारण आत्मा साक्षात ज्ञात नहीं होती । लेकिन स्पर्शन आदि इन्द्रियों से न होने योग्य रूप विज्ञान को उत्पन्न करने की शक्ति ज्ञात होने से आत्मा का अनुमान किया जाता है । इसी प्रकार पृथ्वी आदि में न होने वाले चैतन्य गुण को देखकर आत्मा का अनुमान किया जाता है। चैतन्य एकमात्र आत्मा का ही गुण है । पृथ्वी आदि भूत समुदाय में चैतन्य गुण का निराकरण करने से यह सिद्ध हो जाता है । तथा आत्मा अवश्य है, क्योंकि समस्त इन्द्रियों के द्वारा जाने हुए पदार्थों का सम्मेलनात्मक ज्ञान आत्मा के सिवाय किसी को नहीं हो सकता । 'मैंने पाँचों ही ( इन्द्रिय) विषयों को जाना' यह ज्ञान सम्मेलनात्मक ज्ञान है । यह ज्ञन सब विषयों को जानने वाला एक आत्मा माने बिना हो नहीं सकता, क्योंकि प्रत्येक इन्द्रिय अपनेअपने विषय को प्रत्यक्ष करती है। आंख रूप ही देखती है, वह स्पर्श आदि का ज्ञान नहीं कर सकती । स्पर्शन्द्रिय स्पर्श का ही ज्ञान करती है, वह रूप आदि को नहीं जानती। ऐसी दशा में पूर्वोक्त सम्मेलनात्मक ज्ञान इन्द्रियों को तो होना असंभव है। अतः इन्द्रियों के द्वारा सब अर्थों को प्रत्यक्ष करने वाला एक आत्मा अवश्य मानना चाहिए। वह आत्मा ही सब विषयों को प्रत्यक्ष करता है । पाँच खिड़कियों के समान पाँच इन्द्रियाँ उसके प्रत्यक्ष के साधन हैं । जैसे खिड़कियों के नष्ट हो जाने पर भी उनके द्वारा जाने हुए अर्थ को देवदत्त कालान्तर में स्मरण कर लेता है, वैसे ही इन्द्रियों के नष्ट हो जाने पर भी उनके द्वारा जाने गए अर्थों को आत्मा स्मरण कर लेता है । ७७ एक दूसरी युक्ति से भी आत्मा का अस्तित्व सिद्ध होता है जो पुरुष किसी पदार्थ को देखता है, वही दूसरे समय में उस पदार्थ को स्मरण करता है | परन्तु जो देखता नहीं है, वह स्मरण नहीं कर सकता है । देवदत्त ने जो देखा है, उसे वही स्मरण कर सकता है । देवदत्त ने नेत्र द्वारा जिस पदार्थ को कभी देखा है, नेत्र नष्ट होने पर भी वह उसे स्मरण करता है, यह अनुभवसिद्ध है । यदि नेत्र द्वारा पदार्थ को देखने वाला नेत्र से भिन्न आत्मा नहीं है तो नेत्र नष्ट होने पर नेत्र द्वारा देखे हुए पदार्थ को देवदत्त कैसे स्मरण कर सकता है ? इससे यह स्पष्ट सिद्ध होता है कि नेत्र आदि इन्द्रियों के द्वारा वस्तु का साक्षात्कार करने वाला इन्द्रियों से भिन्न एक आत्मा अवश्य है । जैसे पाँच खिड़कियों के द्वारा देवदत्त वस्तु को प्रत्यक्ष करता है, उसी तरह आत्मा पाँच इन्द्रियों द्वारा रूप आदि विषयों को प्रत्यक्ष करता है । इसी प्रकार अर्थापत्ति प्रमाण से भी आत्मा सिद्ध होता है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003599
Book TitleAgam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorHemchandraji Maharaj, Amarmuni, Nemichandramuni
PublisherAtmagyan Pith
Publication Year1979
Total Pages1042
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sutrakritang
File Size17 MB
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