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समय : प्रथम अध्ययन - प्रथम उद्देशक
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अविनाभावी सम्बन्ध रखने वाला कोई लिंग है, जिससे अनुमान के द्वारा आत्मा सिद्ध हो सके । बौद्धमत में प्रत्यक्ष और अनुमान ये दो ही प्रमाण अविसंवादी हैं, इनसे भिन्न कोई तीसरा प्रमाण नहीं है । पाँचों स्कन्ध क्षणिक हैं । ये न तो कूटस्थ नित्य हैं और न कालान्तर स्थायी हैं, अर्थात संसार के सभी संस्कार क्षणिक हैं, क्षणस्थायी हैं । ये तो एक ही क्षण तक ठहरते हैं, और दूसरे क्षण में समूल नष्ट हो जाते हैं । अतः कोई आत्मा नाम का स्वतंत्र तत्त्व नहीं है, अपितु दीपक की लौ प्रतिक्षण नष्ट होती हैं, उसके स्थान में उसी के सदृश नूतन लो उत्पन्न होती है, इसी तरह पूर्वापर ज्ञान प्रवाह रूप सन्तानें होती हैं ।
इस प्रकार का प्रतिपादन सौत्रान्तिक बौद्धों द्वारा किया गया है। इस मत की मिथ्यादर्शनता तो इसी से सिद्ध हो जाती है कि यह आत्मा नामक तत्त्व को ही नहीं मानता है । जब आत्मा ही नहीं है तो पुण्य-पाप, स्वर्ग-नरक, लोक-परलोक, या बन्ध-मोक्ष किसके होंगे ?
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अब लीजिये सांख्यमत के सिद्धान्तों की चर्चा । सांख्यदर्शन केवल 3 पच्चीस तत्त्वों के ज्ञान मात्र से मुक्ति मानता है, क्रिया को यानी चारित्र को बिलकुल महत्व नहीं देता । आधिभौतिक, आध्यात्मिक एवं आधिदैविक इन तीन दुखों से जब प्राणी प्रबलरूप से सताया जाता है, और वह दुखों के आघात को सहते-सहते घबरा जाता है, तभी उसे दुख विघात के कारणभूत तत्त्वों की जिज्ञासा होती है । तत्त्व पच्चीस हैं । पुरुष ( आत्मा ) और प्रकृति ये दो मुख्य तत्त्व हैं । प्रकृति से महत् (बुद्धि) तत्त्व, महत्तत्त्व से अहंकार और उससे १६ गण (स्पर्शन, रसन, घ्राण, चक्षु और श्रोत्र ये पाँच ज्ञानेन्द्रियाँ, मलस्थान, मूत्रस्थान, वाणी, हाथ और पैर ये पाँच कर्मेन्द्रियाँ,
१. यथाहि इन्धनमुपादायाग्निः एवं स्कन्धानुवादाय आत्मा प्रज्ञप्यते ।
२. प्रधानं प्रकृति स्यक्तमव्याकृतं चेत्यनर्थान्तरम् । ३. पंचविंशति तत्त्वज्ञो यत्रकुत्राश्रमे रतः । जटी मुंडी शिखी वाऽपि मुच्यते नात्र संशयः ।। - सां० का० माठरवृत्ति सांख्य के पच्चीस तत्त्वों को जानने वाला चाहे जिस आश्रम में रहे, वह चाहे शिखा रखे, सिर मुँड़ाए या जटा धारण करे उसकी मुक्ति निश्चित है ।
सांख्यतत्त्वकौमुदी, का० ३१
४. प्रकृति प्रधानं सत्त्वरजस्तमसां साम्यावस्था । ५. प्रकृतेर्महास्ततोऽहंकारस्तस्याद गणश्च षोडशकः । तस्मादपि षोडशकात् पंचम्य पंचभूतानि ॥
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- चतुः श० वृ० १०३
सांख्य सूत्र
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-सां० का०
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