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________________ ठाणं (स्थान) सताउय - दसा-पदं १५४. वासस्ताउस्स णं पुरिसस्स दस दसाओ पण्णत्ताओ, तं जहासंग्रह - सिलोगो १. बाला किड्डा मंदा, पण हायणी । पवंचा पदभारा, मुम्मुही सायणी तथा ॥ तणवणस्सइ-पद तणवणस्सतिकाइया पण्णत्ता, तं जहा मूले, कंदे, खंधे, तया, साले, पवाले, पत्ते, पुणे, फले, बोये । १५५. दस विधा सेढिपदं १५६. सव्वाओवि णं विज्जाहरसेढीओ दस-दस जोयणाई विक्खंभेणं पण्णत्ता । १५७. सव्वाओवि णं अभिओगसेढीओ दस-दस जोयणाई विक्खंभेणं पण्णत्ता । विज्जग-पदं १५८. विज्जगविमाणा णं दस जोयण तपाई उड्ड उच्चतेगं पण्णत्ता । तेयसा भासकरण-पदं १५६. दसह ठाणेह सह तेयसा भासं कुज्जा, तं जहा १. केइ तहारूवं समणं वा माहणं वा अच्चासातेज्जा, से य अच्चासातिते समाणे परिकुविते तस्स तेयं णिसिरेज्जा | से तं परितावेति, से तं परितावेत्ता तामेव सह तेयसा भासं कुज्जा । Jain Education International स्थान १० : सूत्र १५४-१५६ शतायुष्क- दशा-पद शतायुष्क- दशा-पदम् वर्षशतायुषः पुरुषस्य दश दशा: प्रज्ञप्ताः १५४. शतायु पुरुष के दस दशाएं होती हैं" - ६४४ तद्यथा संग्रह - श्लोक १. बाला क्रीडा मन्दा, बला प्रज्ञा हायिनी । प्रपञ्चा प्राग्भारा, मृन्मुखो शायिनी तथा ॥ तृणवनस्पति-पदम् तृणवनस्पति-पद दशविधाः तृणवनस्पतिकायिकाः प्रज्ञप्ताः १५५. तृणवनस्पतिकायिक दस प्रकार के होते तद्यथा— मूलं कन्दः स्कन्धः त्वक्, शाखा, प्रवालं, पत्र, पुष्पं, फलं, बीजम् । श्रेणि-पदम् सर्वा अपि विद्याधरश्रेण्यः दश दश योजनानि विषकम्भेण प्रज्ञप्ताः । सर्वाअपि आभियोगश्रेण्यः दश दश योजनानि विष्कम्भेण प्रज्ञप्ताः । ग्रैवेयक-पदम् ग्रैवेयकविमानानि दश योजनशतानि ऊर्ध्वं उच्चत्वेन प्रज्ञप्तानि । १. बाला, २. क्रीड़ा, ३. मन्दा, ४. बला, ५. प्रज्ञा, ६. हायिनी, ७. प्रपञ्चा 5. प्राग्भारा, ६ मृन्मुखी, १०. शायिनी । For Private & Personal Use Only हैं १. मूल, ४. त्वक्, ७. पत्र, १०. बीज । २. कन्द, ५. शाखा, ८. पुष्प, ३. स्कन्ध, ६. प्रवाल, ६. फल, श्रेणि-पद १५६. दीर्घवैताद्य पर्वत के सभी विद्याधरनगरों की श्रेणियां दस-दस योजन चौड़ी हैं। * १५७. दीर्घवैताढ्य पर्वत के सभी अभियोगिक श्रेणियां [आभियोगिक देवों की श्रेणियां ] दस-दस योजन चौड़ी हैं । ग्रैवेयक पद १५८. ग्रैवेयक विमानों की ऊपर की ऊंचाई दस सौ योजन की है। तेजसा भस्मकरण-पदम् तेज से भस्मकरण- पद दशभिः स्थानैः सह तेजसा भस्म कुर्यात्, १५६. दस कारणों से श्रमण-माहन [ अत्याशाना करने वाले को ] तेज से भस्म कर डालता है तद्यथा— १. कोपि तथारूपं श्रमणं वा माहनं वा अत्याशात (द) येत्, स च अत्याशाति(दि) तः सन् परिकुपितः तस्य तेजः निसृजेत । स तं परितापयति, स तं परिताप्य तमेव सह तेजसा भस्म कुर्यात् । १. कोई व्यक्ति तथारूप – तेजोलब्धिसम्पन्न श्रमण-माहन की अत्याशातना करता है । वह अत्याशातना से कुपित होकर, उस पर तेज फेंकता है । वह तेज उस व्यक्ति को परितापित करता है, परितापित कर उसे तेज से भस्म कर देता है। www.jainelibrary.org
SR No.003598
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Thanam Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages1094
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sthanang
File Size23 MB
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