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ठाणं (स्थान)
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स्थान १० : सूत्र १२२-१२७
१२२. दस सागरोवमकोडाकोडीओ दश सागरोपमकोटिकोटीः कालः १२२. उत्सर्पिणी काल दस कोटि-कोटि सागरोकालो उस्स प्पिणीए। उत्सपिण्याः।
पम का होता है।
अणंतर-परंपर-उववण्णादि-पदं अनन्तर-परम्पर-उपपन्नादि-पदम् अनन्तर-परम्पर-उपपन्नादि-पद १२३. दसविधा णेरइया पण्णता, तं दशविधाः नैरयिकाः प्रज्ञप्ताः , १२३. नैरयिक दस प्रकार के हैं---
१. अनन्तर उपपन्न-जिन्हें उत्पन्न हुए जहातद्यथा
एक समय हुआ। अणंतरोववण्णा, परंपरोववण्णा, अनन्तरोपपन्नाः, परम्परोपपन्नाः, २. परम्पर उपपन्न-जिन्हें उत्पन्न हुए अणंतरावगाढा, परंपरावगाढा, अनन्तरावगाढाः, परम्परावगाढा:,
दो आदि समय हुए हों।
३. अनन्तर अवगाढ-विवक्षित क्षेत्र से अणंतराहारगा, परंपराहारगा, अनन्तराहारकाः, परम्पराहारकाः,
अव्यवहित आकाश प्रदेश में अवस्थित । अणंतरपज्जत्ता, परंपरपज्जत्ता, अनन्तरपर्याप्ताः, परम्परपर्याप्ताः, ४. परम्पर अवगाढ-विवक्षित क्षेत्र से चरिमा, अचरिमा।
व्यवहित आकाश-प्रदेश में अवस्थित । चरमाः, अचरमाः।
५. अनन्तर आहारक-प्रथम समय के एवं—णिरंतरं जाव वेमाणिया। एवम्—निरंतरं यावत् वैमानिकाः । आहारक।
६. परम्पर आहारक --दो आदि समयों के आहारक। ७. अनन्तर पर्याप्त-प्रथम समय के पर्याप्त। ८. परम्पर पर्याप्त-दो आदि समयों के पर्याप्त। ६. चरम-नरकगति में अन्तिम बार
उत्पन्न होने वाले। १०. अचरम-जो भविष्य में नरकगति में
उत्पन्न होंगे। इसी प्रकार वैमानिक तक के सभी दण्डकों
के जीवों के दस-दस प्रकार हैं। णरय-पदं नरक-पदम
नरक-पद १२४. चउत्थीए णं पंकप्पभाए पुढवीए, चतुर्थ्यां पंकप्रभायां पृथिव्यां दश १२४. चौथी पंकप्रभा पृथ्वी में दस लाख नरका
दस णिरयावाससतसहस्सा पण्णत्ता। निरयावासशतसहस्राणि प्रज्ञप्तानि। वास हैं ।
ठिति-पदं स्थिति-पदम
स्थिति-पद १२५. रयणप्पभाए पुढवीए जहण्णेणं णेर- रत्नप्रभायां पृथिव्यां जघन्येन नैरयिकाण १२५. रत्नप्रभा पृथ्वी के नरयिकों की जघन्य
इयाणं दसवाससहस्साई ठितो दशवर्षसहस्राणि स्थितिः प्रज्ञप्ता। स्थिति दस हजार वर्ष की है।
पण्णत्ता। १२६. चउत्थीए णं पंकप्पभाए पुढवीए चतुर्थ्यां पङ्कप्रभायां पृथिव्यां उत्कर्षेण १२६. चौथी पंकप्रभा पृथ्वी के नरयिकों की
उक्कोसेणं रइयाणं दस सागरो- नैरयिकाणां दश सागरोपमाणि स्थितिः उत्कृष्ट स्थिति दस सागरोपम की है।
वमाइ ठिती पण्णत्ता। प्रज्ञप्ता। १२७. पंचमाए णं धूमप्पभाए पुढवीए पञ्चम्यां धूमप्रभायां पृथिव्यां जघन्येन १२७. पांचवीं धूमप्रभा पृथ्वी के नैरयिकों की
जहणणं णेरइयाणं दस सागरो- नैरयिकाणां दश सागरोपमाणि स्थिति: जघन्य स्थिति दस सागरोपम की है। वमाई ठिती पण्णत्ता।
प्रज्ञप्ता।
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