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________________ ठाणं (स्थान) १०. जण्णं समणे भगवं महावीरे १०. यत् श्रमणः भगवान् महावीरः एकं एगं च णं महं मंदरे पव्वते मंदर- च महान्तं मन्दरे पर्वते मन्दरचूलिकायाः । चलियाए उरि 'सीहासणवरगय- उपरि सिंहासनवरगतमात्मानां स्वप्ने । मत्ताणं सुमिणे पासित्ता गं° दृष्ट्वा प्रतिबुद्धः, तत् श्रमणः भगवान् पडिबुद्धे, तण्णं समणे भगवं महावीर: सदेवमनुजासुरायां परिषदि । महावीरे सदेवमणुयासुराए मध्यगतः केवलिप्रज्ञप्तं धर्म आख्याति परिसाए मझगते केवलिपण्णत्तं प्रज्ञापयति प्ररूपयति दर्शयति निदर्शयति धम्मं आघवेति पण्णवेति 'परवेति उपदर्शयति । दसति णिदंसेति उवदंसेति । स्थान १० : सूत्र १०४-१०५ १०. श्रमण भगवान् महावीर स्वप्न में महान् मन्दर पर्वत की मन्दरचूलिका पर अवस्थित सिंहासन के ऊपर अपने आपको बैठे हुए देखकर प्रतिबुद्ध हुए, उसके फलस्वरूप भगवान् ने देव, मनुष्य और असुर की परिषद् के बीच में केवलीप्रज्ञप्त धर्म का आख्यान किया, प्रज्ञापन किया, प्ररूपण किया, दर्शन, निदर्शन और उपदर्शन किया। रुचि-पदं रुचि-पदम् रुचि-पद १०४. दसविधे सरागसम्मइंसणे पण्णत्ते, दशविधं सरागसम्यग्दर्शनं प्रज्ञप्तम्, १०४. सराग-सम्यग्दर्शन के दस प्रकार है"--- १. निसर्ग रुचि-नैसर्गिक सम्यग्दर्शन। तं जहातद्यथा २. उपदेश रुचि--उपदेशजनित सम्यग दर्शन । संगहणी-गाहा संग्रहणी-गाथा ३. आज्ञा रुचि --वीतराग द्वारा प्रतिपा दित सिद्धान्त से उत्पन्न सम्यग्दर्शन । १. णिसग्गुवएसरुई, १. निसर्गोपदेशरुचि:, ४. सूत्र रुचि-सूत्र ग्रन्थों के अध्ययन से आणारुई सुत्तबीयरुइ मेव। आज्ञारुचिः सूत्रबी जरुचिरेव । उत्पन्न सम्यग्दर्शन। ५. बीज रुचि--सत्य के एक अंश के अभिगम-वित्थाररुई, अभिगम-विस्ताररुचि:, सहारे अनेक अंशों में फैलने वाला सम्यग किरिया-संखेव-धम्मरुई॥ क्रिया-संक्षेप-धर्मरुचिः ॥ दर्शन। ६. अभिगम रुचि-विशाल ज्ञानराशि के आशय को समझने पर प्राप्त होने वाला सम्यग्दर्शन। ७. विस्तार रुचि-प्रमाण और नय की विविध भंगियों के बोध से उत्पन्न सम्यगदर्शन। ८. क्रिया रुचि-क्रियाविषयक सम्यगदर्शन। ६. संक्षेप रुचि ---मिथ्या आग्रह के अभाव में स्वल्प ज्ञान जनित सम्यग्दर्शन । १०. धर्म रुचि-धर्म विषयक सम्यग्दर्शन। सण्णा -पदं संज्ञा-पदम् संजा-पद १०५. दस सण्णाओ पण्णत्ताओ, तं जहा- दश संज्ञाः प्रज्ञप्ताः, तद्यथा- १०५. संज्ञा के दस प्रकार हैंआहारसण्णा, 'भयसण्णा, आहारसंज्ञा, भयसंज्ञा, १. आहारसंज्ञा, २. भयसंज्ञा, मेहुणसण्णा, परिग्गहसण्णा, मैथुनसंज्ञा, परिग्रहसंज्ञा, ३. मैथुनसंज्ञा, ४. परिग्रहसंज्ञा, कोहसण्णा, 'माणसण्णा क्रोधसंज्ञा, मानसंज्ञा, ५. क्रोधसंज्ञा, ६. मानसंज्ञा, मायासण्णा, लोभसण्णा, मायासंज्ञा, लोभसंज्ञा, ७. मायासंज्ञा, ८. लोभसंज्ञा, लोगसपणा, ओहसण्णा। लोकसंज्ञा, ओघसंज्ञा । ६. लोकसंज्ञा, १०. ओघसंज्ञा। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003598
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Thanam Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages1094
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sthanang
File Size23 MB
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