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________________ ठाणं (स्थान) ६१८ स्थान १० : सूत्र ७४-७८ मिच्छत्त-पदं मिथ्यात्व-पदम् मिथ्यात्व-पद ७४. दसविधे मिच्छत्ते पण्णत्ते, तं जहा- दशविध मिथ्यात्व प्रज्ञप्तम, तद्यथा- ७४. मिथ्यात्व के दस प्रकार हैंअधम्मे धम्मसण्णा, अधर्मे धर्मसंज्ञा, १. अधर्म में धर्म की संज्ञा। धम्मे अधम्मसण्णा, धर्मे अधर्मसंज्ञा, २. धर्म में अधर्म की संज्ञा। उमग्गे मग्गसण्णा, उन्मार्गे मार्गसंज्ञा, ३. अमार्ग में मार्ग की संज्ञा। मग्गे उम्मग्गसण्णा, मार्गे उन्मार्गसंज्ञा, ४. मार्ग में अमार्ग की संज्ञा । अजीवेसु जीवसण्णा, अजीवेषु जीवसंज्ञा, ५. अजीव में जीव की संज्ञा। जीवेसु अजीवसण्णा, जीवेषु अजीवसंज्ञा, ६. जीव में अजीव की संज्ञा। असाहुसु साहुसण्णा, असाधुषु साधुसंज्ञा, ७. असाधु में साधु की संज्ञा। साहुसु असाहुसण्णा, साधुषु असाधुसंज्ञा, ८. साधु में असाधु की संज्ञा। अमुत्तेसु मुत्तसण्णा, अमुक्तेषु मुक्तसंज्ञा, ६. अमुक्त में मुक्त की संज्ञा। मुत्तेसु अमुत्तसण्णा। मुक्तेषु अमुक्तसंज्ञा। १०. मुक्त में अमुक्त की संज्ञा। तित्थगर-पदं तीर्थकर-पदम् तीर्थकर पद ७५. चंदप्पभे णं अरहा दस पुव्वसत- चन्द्रप्रभः अर्हन् दश पूर्वशतसहस्राणि ७५. अर्हत् चन्द्रप्रभ दस लाख पूर्व का पूर्णायु सहस्साइ सव्वाउयं पालइत्ता सिद्धे सर्वायु: पालयित्वा सिद्धः बुद्ध: मुक्तः पालकर सिद्ध, बुद्ध, मुक्त, अन्तकृत, परि'बुद्धे मुत्ते अंतगडे परिणिव्वुडे अन्तकृतः परिनिर्वृतः सर्वदुःख- निर्वृत और समस्त दुःखों से रहित हुए। सव्वदुक्खप्पहीणे। प्रक्षीणः । ७६. धम्मे णं अरहा दस वाससयसह- धर्मः अर्हन् दश वर्षशतसहस्राणि सर्वायुः ७६. अर्हत् धर्म दस लाख वर्ष का पूर्णायु पाल स्साई सव्वाउयं पालइत्ता सिद्धे पालयित्वा सिद्धः बुद्धः मुक्तः अन्तकृतः कर सिद्ध, बुद्ध, मुक्त, अन्तकृत, परिनिर्वृत बुद्धे मुत्ते अंतगडे परिणिव्वुडे परिनिर्वतः सर्वदुःखप्रक्षीणः । और समस्त दुःखों से रहित हुए। सव्वदुक्खप्पहीणे । ७७. णमी णं अरहा दस वाससयसह- नमिः अर्हन् दश वर्षसहस्राणि सर्वायुः ७७. अर्हत् नमि दस हजार वर्ष का पूर्णायु स्साइ सव्वाउयं पालइत्ता सिद्धे पालयित्वा सिद्धः बुद्धः मुक्तः अन्तकृतः पालकर सिद्ध, बुद्ध, मुक्त, अन्तकृत, परि'बुद्धे मुत्ते अंतगडे परिणिन्वुडे परिनिर्वृतः सर्वदुःखप्रक्षीणः । निर्वृत और समस्त दुःखों से रहित हुए । सव्वदुक्खप्पहीणे । वासुदेव-पदं वासुदेव-पदम् वासुदेव-पद ७८. पुरिससीहे णं वासुदेवे दस वाससय- पुरुषसिंहः वासुदेवः दश वर्षशतसहस्राणि ७८. पुरुषसिंह नामक पांचवें वासुदेव दस लाख सहस्साई सव्वाउयं पालइत्ता सर्वायु: पालयित्वा षष्ठ्यां तमायां वर्ष का पूर्णायु पालकर ‘तमा' नामक छठी छट्ठीए तमाए पुढवीए णेरइयत्ताए पृथिव्यां नैरयिकतया उपपन्नः। पृथ्वी में नरयिक के रूप में उत्पन्न हुए। उववण्णे। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003598
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Thanam Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages1094
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sthanang
File Size23 MB
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