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स्थान १०:सूत्र २
७. न ऐसा कभी हुआ, न ऐसा हो रहा है और न ऐसा कभी होगा कि लोक अलोक में प्रविष्ट हो जाए और अलोक लोक में प्रविष्ट हो जाए—यह एक लोकस्थिति
८. जहां लोक है वहां जीव है और जहां जीव है वहां लोक है-यह एक लोकस्थिति है।
ठाणं (स्थान)
८१८ ७. ण एवं भूतं वा भव्वं भविस्सति ७. न एवं भूतं वा भाव्यं वा भविष्यति वा जं लोए अलोए पविस्सति, वा यल्लोक: अलोके प्रवेक्ष्यति, अलोकः । अलोए वा लोए पविस्सति- वा लोके प्रवेक्ष्यति एवमप्येका लोकएवंप्पेगा लोगट्ठिती पण्णत्ता। स्थितिः प्रज्ञप्ता। ८. जाव ताव लोगे ताव ताव ८. यावत् तावत् लोकः तावत्जीवा, जाव ताव जीवा ताव ताव तावज्जीवाः, यावत् तावत् लोए–एवंप्पेगा लोगद्विती जीवास्तावत्तावल्लोक:—एवमप्येका पण्णत्ता।
लोकस्थितिः प्रज्ञप्ता। ६. जाव ताव जीवाण य पोग्ग- ६. यावत् तावज्जीवानां च पुद्गलानाञ्च लाण य गतिपरियाए ताव ताव गतिपर्यायः तावत् तावल्लोकः, यावत् लोए, जाव ताव लोगे ताव ताव तावल्लोक: तावत् तावज्जीवानाञ्च जीवाण य पोग्गलाण य गति- पुद्गलानाञ्च गतिपर्यायः-एवमप्येका परियाए-एवं-पेगा लोगद्विती लोकस्थितिः प्रज्ञप्ता। पण्णत्ता। १०. सव्वेसुवि णं लोगतेसु अबद्ध- १०. सर्वेष्वपि लोकान्तेषु अबद्धपार्श्वपासपुट्ठा पोग्गला लुक्खत्ताए स्पृष्टाः पुद्गला: रूक्षतया क्रियन्ते, येन कज्जंति, जेणं जीवा य पोग्गला जीवाश्च पुद्गलाश्च नो शक्नुवन्ति य णो संचायति बहिया लोगंता बहिस्ताल्लोकान्तात् गमनतायै—एवगमणयाए–एवंप्पेगा लोगट्टिती मप्येका लोकस्थितिः प्रज्ञप्ता। पण्णत्ता।
६. जहां जीव और पुद्गलों का गतिपर्याय है वहां लोक है और जहां लोक है वहां जीव और पुद्गलों का गतिपर्याय हैयह एक लोकस्थिति है।
१०. समस्त लोकान्तों के पुद्गल दूसरे रूक्ष पुद्गलों के द्वारा अबद्धपार्श्वस्पृष्ट [अबद्ध और अस्पृष्ट] होने पर भी लोकान्त के स्वभाव से रूक्ष हो जाते हैं, जिससे जीव और पुद्गल लोकान्त से बाहर जाने में समर्थ नहीं होते—यह एक लोकस्थिति है।
इन्द्रियार्थ-पद २. शब्द के दस प्रकार हैं
इंदियत्थ-पदं २. दसविहे सद्दे पण्णत्ते, तं जहा
संगह-सिलोगो १. णीहारि पिडिमे लुक्खे, भिण्णे जज्जरिते इ य। दोहे रहस्से पुहत्ते य, काकणी खिखिणिस्सरे ॥
इन्द्रियार्थ-पदम् दशविधः शब्दः प्रज्ञप्तः, तद्यथासंग्रह-श्लोक १. निर्हारी पिण्डिमः रूक्षः, भिन्नः जर्जरितोऽपि च । दीर्घः ह्रस्वः पृथक्त्वश्च, काकणी किंकिणीस्वरः ।।
१. निर्हारी-घोषवान् शब्द, जैसेघण्टा का। २. पिण्डिम-घोषवजित शब्द, जैसे-नगाड़े का।३. रूक्ष-जैसे-कौवे का। ४. भिन्न-वस्तु के टूटने से होने वाला शब्द। ५. जर्जरित—जैसे—तार वाले बाजे का शब्द। ६. दीर्घ'—जो दूर तक सुनाई दे, जैसे—मेघ का शब्द । ७. ह्रस्व-सूक्ष्म शब्द, जैसे-वीणा का। ८.पृथक्त्व-अनेक बाजों का संयुक्त शब्द। ६. काकणी-काकली, सूक्ष्मकण्ठों की गीतध्वनि। १०. किंकिणी स्वर-घूघरों की ध्वनि।
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